इसरो रॉकेट लांच में पहली बार इस्तेमाल करेगा मल्टीपल बर्न टेक्नोलॉजी

बहुज्वलन प्रौद्योगिकीचेन्नई| भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो सोमवार को पहली बार रॉकेट प्रक्षेपण में अपनी बहुज्वलन प्रौद्योगिकी (मल्टीपल बर्न टेक्नोलॉजी) का व्यावसायिक उपयोग करेगा। सोमवार को आठ उपग्रह प्रक्षेपित किए जाने हैं, जिनमें पांच विदेशी और तीन घरेलू हैं। ये अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किए जाएंगे।

बहुज्वलन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल

बहुज्वलन प्रौद्योगिकी वास्तव में रॉकेट के इंजन को अंतरिक्ष में चालू करने और बंद करने की प्रौद्योगिकी है।

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के. सिवन ने भी आईएएनएस को बताया कि ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के प्रक्षेपण के लिए 48.5 घंटे की उल्टी गिनती आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सही ढंग से जारी है।

उल्टी गिनती शनिवार सुबह 8.42 बजे शुरू हुई थी और उम्मीद है कि इसका प्रक्षेपण सोमवार सुबह 9.12 बजे होगा।

सिवन ने कहा, “हम लोग उपग्रह भेजने के लिए पहली बार बहुज्वलन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पहले हमने इस प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए पीएसएलवी के चौथे चरण में इंजन को चालू और बंद किया था।”

उन्होंने कहा कि पहली बार इसरो ने बहुज्वलन प्रौद्योगिकी का परीक्षण पीएसएलवी में 16 दिसंबर, 2015 को किया था। उसके बाद इस साल जून में भी इस प्रौद्योगिकी को प्रमाणित किया गया।

सोमवार को जिन चुनौतियों का सामना करना है, उनके बारे में सिवन ने कहा, “इंजन को अलग करने के बाद इसकी स्थिति ऐसी रहनी चाहिए कि फिर से चालू किया जा सके। दूसरी चुनौती इंजन को नियंत्रित करने की और इस तरह लाने की है कि वह शेष उपग्रहों को विभिन्न कक्षाओं में पहुंचा दे।”

उन्होंने कहा कि रॉकेट में जीपीएस युक्त नौवहन प्रणाली है, ताकि निष्क्रिय स्थिति में रॉकेट की नौवहन प्रणाली से जो आंकड़े मिलेंगे और एक जो पहले की स्थिति वाले आंकड़े मिलेंगे, उन्हें इस तरह से मिश्रित किया जाए कि त्रुटियां खत्म हो जाएं और महत्वपूर्ण आंकड़े मिलें।

सोमवार को 320 टन के पीएसएलवी रॉकेट पर 371 किलोग्राम के स्कैटसैट-1 उपग्रह को समुद्र और मौसम से जुड़े अध्ययन के लिए 730 किलोमीटर ध्रुवीय सौर स्थैतिक कक्षा में स्थापित करना है। इसमें कुल 17 मिनट का समय लगेगा।

इससे भेजे जाने वाले पांच जो विदेशी उपग्रह हैं, उनमें एलसैट-1बी वजन 103 किलोग्राम, एलसैट-2बी वजन 117 किलोग्राम और एलसैट-1एन वजन सात किलोग्राग है और ये तीनों अल्जीरिया के हैं। एक कनाडा का एनएलएस-19 वजन आठ किलोग्राम और एक अमेरिका का पाथफाइंडर वजन 44 किलोग्राम है।

इनके अलावा दो और भारतीय उपग्रह हैं। एक का वजन 10 किलोग्राम है, जिसे आईआईटी बंबई ने तैयार किया है और दूसरा पीसैट है, जिसे पीईएस विश्वविद्यालय बेंगलुरू और इसके संकाय ने बनाया है और इसका वजन 5.25 किलोग्राम है।

श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण के बाद स्कैटसैट-1 को कक्षा में पहुंचाने के बाद रॉकेट के चौथे चरण का इंजन बंद हो जाएगा और यह एक घंटे 22 मिनट बाद फिर से दो बार चालू होगा।

अंतरिक्ष में दो घंटे और 11 मिनट की उड़ान के बाद इसका चौथा चरण फिर से चालू होगा। सात मिनट बाद सभी सात उपग्रह अपनी इच्छित कक्षा में पहुंच जाएंगे।

सिवन ने कहा कि इंजन बंद होने और फिर से चालू होने के समय में बहुत अधिक अंतर कोई मुद्दा नहीं है।

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