दुनिया की किसी भी स्मार्ट डिवाइस को ऐसे कर सकते हैं आप आसानी से हैंक , जाने कैसे…
खबर आई थी की एपल मैक को कोई हैक कर सकता हैं। लेकिन इसके साथ ही कैमरा और माइक्रोफोन का एक्सेस भी अपने कंट्रोल में ले सकता हैं। देखा जाये तो इसकी शिकायत के बाद एपल ने अपनी तमाम डिवाइस से वॉकी-टॉकीऑडियो चैट फीचर को बंद कर दिया, जहां किसी भी यूजर की जानकारी हैक न कर सके।
बतादें की कुछ दिन पहले ही एक सिक्योरिटी रिसर्चर ने ऐसा ही बग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप Zoom में निकाला था, जिसके जरिए हैकर्स मैक यूजर का कैमरा बिना इजाजत एक्सेस कर सकते थे। चिंताजनक बात यह है कि जूम एप को अन-इंस्टॉल करने के बाद भी हैकर्स मैक का कैमरा एक्सेस कर सकते थे। इसकी शिकायत के बाद एपल और जूम दोनों ने इस बग को फिक्स किया। ऐसी तमाम रिपोर्ट्स आपको मिल जाएंगी, जिनमें यूजर्स की सुरक्षा और निजता खतरे में पड़ी है। अब सवाल यह है कि इस तरह की हैकिंग से कैसे बचा जाए। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
जहां मई में जारी राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक 43 प्रतिशत अमेरिकी लोगों का मानना है कि उनकी इजाजत के बिना उनकी डिवाइस की रिकॉर्डिंग होती है। इस सर्वे में 1,000 से अधिक वयस्क लोगों को शामिल किया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक टेक कंपनियां विज्ञापन के लिए यूजर्स की डिवाइस ट्रैक और रिकॉर्ड कर रही हैं। शोधकर्ताओं का मानना है इस तरह की ट्रैकिंग से विज्ञापनदाताओं को विज्ञापन देने में आसानी होती है और विज्ञापन सिर्फ उन्हीं लोगों तक पहुंचाया जाता है, जो वाकई उसमें रूची रखते हैं। वहीं दूसरी तररफ स्मार्ट डिवाइस के साथ हमेशा इस बात का खतरा बना रहता है कि हैकर्स किसी भी वक्त आपकी डिवाइस के कैमरे और माइक्रोफोन को रिमोट कंट्रोल पर ले सकते हैं।
डिस्कोकॉन के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी पैट्रिक जैक्सन का मानना है कि हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि स्मार्ट डिवाइस के साथ जोखिम है, क्योंकि इन डिवाइस में तमाम तरह के सेंसर्स होते हैं जिनके बारे में यूजर्स को जानकारी नहीं होती है। इस मामले पर सीआर की भागीदारी वाली एक साइबरसिटी फर्म का भी मानना है कि यूजर्स को पता नहीं चलता कि उसकी डिवाइस का कौन-सा सेंसर कब ऑन है और वह सेंसर क्या कर सकता है। जैक्सन ने इन सबसे बचने के कुछ तरीके भी बताए हैं।
आइए जानते हैं इनके बारे में-
दरअसल उपभोक्ता रिपोर्ट में सुरक्षा और गोपनीयता परीक्षण के लिए प्रोजेक्ट लीडर कोडी फेंग का कहना है, ‘जब भी आप अपने फोन या सिस्टम में कोई एप डाउनलोड करते हैं तो आप हैकर के लिए एक नया दरवाजा खोलते हैं। डिजिटल सिक्योरिटी में इसे अटैक सरफेस कहा जाता है।’ गूगल हैंगआउट, स्काइप और जूम जैसे एप का इस्तेमाल लोग वीडियो कॉलिंग के लिए करते हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इन एप के इस्तेमाल से बेहतर इनके वेब वर्जन ब्राउजर हैं, जो अधिक सुरक्षित है।
ऐसे में आपके लिए बेहतर है कि आप इन एप्स को डाउनलोड ना करें। एप्स के बदले आप इनके वेब वर्जन का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि कोई भी वेब ब्राउजर पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होता है। लेकिन ब्राउजर कैमरा और माइक्रोफोन के एक्सेस के लिए आपसे बार-बार इजाजत लेते हैं, वहीं एप्स एक ही बार में पूरा एक्सेस मांग लेते हैं। ऐसे में एप्स के साथ सिक्योरिटी का खतरा अधिक है।