जानिए भारत में सस्ती होगी अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सवारी , सस्ते में तय होगा सफ़र…

आज के समय में इतनी महंगाई हो गयी हैं कि छोटी हो या बड़ी चीजे खरीदना मुश्किल हो गया हैं। बतादें कि इलेक्ट्रिक चीजे हो या फिर कपड़े हर तरफ मंहगाई क दौर चल रहा हैं। लेकिन आपको बतादें कि इस साल लांच कि गई फेम-2 इलेक्ट्रिक गाड़ियां भारतमने आ चुकी हैं। वहीं  ऐसे में महंगी बैटरियों के साथ जल्द से जल्द इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना भारत के विकास के लिए हैं।

 

देखा जाये तो इसका उत्तर बिल्कुल स्पष्ट है अगर बैटरी सस्ती होंगी, तो इलेक्ट्रिक कारों को जल्द से जल्द अपनाने में कोई बुराई नहीं है। जिस तरह एक पेट्रोल कार में सबसे अहम हिस्सा इंटरनल कंबशन इंजन होता है, ठीक वैसे ही इलेक्ट्रिक वाहनों में बैटरी का रोल होता है। फिलहाल इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम-आयन बैटरियों का इस्तेमाल हो रहा है। लिथियम का इस्तेमाल ही इलेक्ट्रिक वाहन के व्यापक इस्तेमाल में रोड़ा बन रहा है।

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वहीं असल में लिथियम के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है कि ये बैटरियां भारी होने के साथ लंबी दूरी तय नहीं कर सकती हैं, वहीं इनके कच्चे माल के लिए हमें हमेशा चीन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। वजह है कि चीन ने लिथियम की अहमयित को ध्यान में रखते पहले ही अफ्रीका समेत दुनियाभर में फैले भंडारों पर कब्जा जमा चुका है। वहीं उद्योग जगत के आंकड़ों के मुताबिक भारत को हर साल 3.5 लाख टन लिथियम की जरूरत है।

इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि एक परंपरागत इलेक्ट्रिक वाहन में लगभग 500 किग्रा का बैटरी पैक होता है। जिसमें 100 से ज्यादा लिथियम आयन छड़ों के अलावा मिश्रित लिथियम, कोबाल्ट, निकिल, और मैंगनीज धातु होती है। हर धातु का अपना उपयोग है, जैसे लिथियम इलेक्ट्रॉन्स पैदा करता है, जो बैटरी चार्ज करने में सहायक होते हैं, वहीं कोबाल्ट बैटरी को ओवरहीटिंग होने से बचाता है। लेकिन समस्या यह है कि दुनियाभर में लिथियम या कोबाल्ट के भंडार धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।

जहां केवल कुछ ही देशों में लिथियम के भंडार बचे हुए हैं। बोलिविया और चिली में 65 फीसदी लिथियम भंडार हैं, तो कांगो में 54 फीसदी कोबाल्ट के भंडार हैं। लेकिन बढ़ती मांग ने दोनों को महंगा कर दिया है। आज दोपहिया वाहनों की कीमत में 70 फीसदी कीमत बैटरी की होती है, जबकि कारों में यह आंकड़ा 50 फीसदी का है। वहीं भारत में इन दोनों के स्रोत होने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। हाल ही में जारी एक मेटल बुलेटिन रिपोर्ट का कहना है कि 2018 से लिथियम बैटरी ग्रेड वाले यौगिकों की कमी की शुरुआत हो चुकी है।

वॉल स्ट्रीट जनरल की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन कोबाल्ट को कांगो से आयात करता है, जो इस धातु का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। चीन ने 2017 में पहले नौ महीनो में 120 करोड़ डॉलर के कोबाल्ट का आयात किया, वहीं 32 लाख डॉलर के कोबाल्ट का आयात किया। भारत कोबाल्ट आयात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक दुनियाभर में कोबाल्ट की मांग बढ़ने के चलते उत्पादन 2000 से बढ़कर लगभग 123,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष हो गया है। इन दोनों धातुओं का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों को पावर देने के अलावा स्मार्टफोन, लैपटॉप, स्पेस टेक्नोलॉजी और डिफेंस में होता है।

वहीं चीन ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए खुद को बैटरी हब के तौर पर स्थापित कर लिया है। कांगों की आधे से ज्यादा कोबाल्ट खानों पर चीनी कंपनियों का कब्जा है। आज पूरी दुनिया के 60 फीसदी बैटरी बाजार पर चीन का कब्जा है। वहीं वह लगातार कागों, बोलिविया, चिली और आस्ट्रेलिया में अपनी पहुंच बढ़ा रहा है। जिसके बाद इलेक्ट्रिक वाहनों को सप्लाई होने वाले कोबाल्ट और लिथियम को लेकर चीन पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। वहीं महंगी इलेक्ट्रिक कारें बनाने के लिए मशहूर टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों को भी इस समस्या के लिए चिंतित होने की जरूरत है।

लेकिन अब कई कंपनियों को चीन की इस रणनीति का अंदाजा होने लगा है। कई देशों ने लिथियम आयन वाली बैटरियों की जगह नेक्स्ट जेनरेशन बैटरियां विकसित करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। पैनासोनिक, टेस्ला, टोयोटा इनमें सबसे आगे हैं। भारत में भी टेस्ला ने फैक्टरी लगाने में दिलचस्पी दिखाई है। इन कंपनियों की कोशिश है कि कैसे कोबाल्ट के इस्तेमाल को कम किया जाए और इसकी जगह सल्फर, सोडियम और मैग्नीशियम का इस्तेमाल किया जाए।

वहीं भारत के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के सपने को सही अंजाम तक पहुंचाने के लिए दो ही विकल्प बचे हैं। या तो वह महंगा कोबाल्ट और लिथियम खरीदे और बैटरी के निर्माण में अपनी विशेषज्ञता हासिल करें। या फिर चीन से बैटरियों का आयात करे। लेकिन चीन से आयात बैटरियों की क्वालिटी इतनी घटिया है कि इसका भारत के इलेक्ट्रिक प्रोग्राम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स कार्यक्रम से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि बैटरी टेक्नोलॉजी लगातार बदल रही है और पुरानी बैटरियों का वहां कोई बाजार नहीं है। जिसके चलते चीन में दोयम दर्जे के बैटरी निर्माता भारत में ये बैटरियां बेच रहे हैं, क्योंकि चीन में उनका कोई खरीदार नहीं है।

इसके लिए जापान का उदाहरण समझने की जरूरत है। वहां इलेक्ट्रिक कारें 10 साल पहले ही आ गई थीं, लेकिन बैटरी टेक्नोलॉजी में वह मात खा गया और चीन के एकाधिकार को नहीं तोड़ पाया। यहां तक कि नए इलेक्ट्रिक वाहनों में वही पुरानी जेनरेशन की लिथियम आयन बैटरियां ही इस्तेमाल हो रही हैं।

दरअसल वहीं भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को फुल स्पीड में दौड़ने के लिए दो बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। पहला, इलेक्ट्रिक वाहनों में से गैर जरूरी पार्ट्स जैसे मल्टीपल स्पीड ट्रांसमिशन को खत्म किया जाए, क्योंकि इलेक्ट्रिक मोटर्स एक ही तरह का टॉर्क जेनरेट करती है, इसलिए उसमें क्लच और गियरबॉक्स की कोई जरूरत नहीं है। चूकिं इलेक्ट्रिक गाड़ियां प्रदूषण रहित होती हैं, तो इनमें एग्जास्ट पाइपलगाने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। एक इलेक्ट्रिक वाहन में तकरीबन 20 मूविंग पार्ट्स होते हैं, जबकि सामान्य पेट्रोल या डीजल गाड़ी में यह संख्या 2000 से ज्यादा होती है।

 

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