लखनऊ। सूबे की सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ऐतिहासिक इमारतों से लेकर सड़कों के नामों में बदलाव की मुहिम छेड़ रखी है। सरकार भले ही इसे नैतिकता और अखंडता से जोड़ती हो। लेकिन सच कुछ और ही मालूम पड़ता है।
वैसे ये कोई नई बात नहीं है। जब राज्य की सरकारों ने ऐसा कदम उठाया हो। इससे पहले भी सत्ताधीश अपने पार्टी और सिम्बल को बढ़ावा देने के लिए कई तथाकथित जनहित सुधार कर चुके हैं।
दरअसल, इस बार योगी सरकार इलाहाबाद शहर का नाम बदलने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि अगले वर्ष आयोजित होने वाले कुंभ मेले से पहले यह काम किया जा सकता है।
इस संबंध में संतों और अखाड़ा परिषदों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया था और खुद मुख्यमंत्री ने इलाहाबाद की अपनी यात्रा के दौरान इस संबंध में संकेत दिये थे।
सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश का मंत्रिमंडल जल्द ही कैबिनेट बैठक कर इस मुद्दे पर फैसला ले सकता है।
इलाहाबाद को वैसे भी तीर्थराज प्रयाग के नाम से जाना जाता है। पहले इसका नाम प्रयाग ही था लेकिन मुगल बादशाह अकबर ने 1583 ईस्वीं में इसका नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया था। अब संघ और भाजपा नेताओं की भी मांग है कि इस शहर का नाम बदला जाये। भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि शहर का नाम बदलने से पार्टी को चुनावी लाभ भी हो सकता है।
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सूबे के मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलवा कर दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन करवा दिया।
योगी जब गोरखपुर के सांसद थे तब भी कहा गया कि उन्होंने कई बाजारों के नाम बदलवा कर उनके हिंदू नाम करवा दिये थे। योगी इस पर तर्क देते रहे हैं कि हम पुराना गौरव बहाल कर रहे हैं। अब कुंभ से पहले इलाहाबाद का नाम प्रयाग राज करने के पीछे भी यही तर्क दिया जा सकता है।
इससे पहले ही भी हो चुके हैं कई बदलाव
पार्टी नेताओं का तर्क है कि यह पहली बार नहीं होगा कि किसी शहर या जिले का नाम बदला जाये। इससे पहले मायावती और अखिलेश यादव भी अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ऐसा कर चुके हैं। मायावती ने तो अपने कार्यकाल में 11 जिलों के नाम दलित महापुरुषों पर कर दिये थे।
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उल्लेखनीय है कि सरकार कुंभ की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रैंडिंग कर रही है और इस संबंध में अगर आप इलाहाबाद में लगे विभिन्न होर्डिगों पर भी देखेंगे तो उनमें प्रयाग कुंभ का जिक्र किया गया है।
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