हर साल 27 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएगा सऊदी अरब

(एतारत अहमद)

सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने शनिवार (23 अक्टूबर) को सऊदी ग्रीन इनिशिएटिव (एसजीआई) के प्रमुख के तौर पर एक पर्यावरण सम्मेलन में घोषणा करते हुए बताया की सऊदी अरब ने 2060 तक ज़ीरो-नेट इमिशन का लक्ष्य रखा है।

क्राउन प्रिंस सलमान के मुताबिक 186.63 अरब डॉलर के निवेश की मदद से सऊदी अरब हर साल 27 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएगा। एसजीआई समिट ने साल 2030 तक हर साल कार्बन उत्सर्जन में 278 मेगा टन की कमी लाने का लक्ष्य रखा है, जो इस साल के लक्ष्य से दोगुना से भी ज़्यादा है। सऊदी अरब दुनिया के बड़े प्रदूषक देशों की फ़ेहरिस्त में आता है। COP 26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने सऊदी की इस घोषणा का स्वागत करते हुए ट्वीट के ज़रिए यह कहा है कि, ‘मुझे उम्मीद है कि सऊदी अरब की इस घोषणा से बाक़ी देश भी प्रेरित होंगे’।

ऐसी गैस जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वो ही ग्रीनहाउस गैस हैं। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैस को ग्रीनहाउस हाउस गैस की श्रेणी में रखा गया है। ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन और वातावरण से ग्रीनहाउस गैस कम करने के बीच के संतुलन को ज़ीरो-नेट इमिशन कहते हैं। अब तक जितनी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता आया है, उसमें कमी लाने का पैमाना ज़ीरो-नेट इमिशन कहलाता है। वातावरण से ग्रीनहाउस गैस जितनी कम हुई है या कम की गई है, उसकी तुलना में ज़्यादा उत्सर्जन ना होना या ना करना, यह ही ज़ीरो-नेट इमिशन है।

स्कॉटलैंड के ग्लासगो में अगले महीने होने वाले वैश्विक जलवायु सम्मेलन से पहले सऊदी अरब ने यह घोषणा की है कि सऊदी अरब अब ‘वैश्विक मीथेन संकल्प’ में शामिल हो कर 2030 तक वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में भी 30 फ़ीसदी तक की कमी लाएगा।

क्राउन प्रिंस सलमान के मुताबिक साल 2030 तक सऊदी अरब में 45 करोड़ नए पेड़ लगाने का, रियाद शहर को हरा-भरा बनाने का और बंजर हुई ज़मीन को उर्वर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। रूस और चीन ने भी 2060 तक ज़ीरो-नेट इमिशन का लक्ष्य रखा है। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देश साल 2050 तक ये लक्ष्य हासिल करने की कोशिश में हैं।

विश्लेषकों कि माने तो इस घोषणा के बाद वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ता में सऊदी अरब ने अपनी जगह सुरक्षित कर ली है, लेकिन के इस्तेमाल को तत्काल रोकने की मांग को लेकर सऊदी अरब कहता रहा है कि अचानक ऐसा करने से ईंधन की कमी हो जाएगी और महंगाई भी बढ़ जाएगी। एक तरफ़ सऊदी अरब कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की बात करता है, लेकिन दूसरी तरफ़ भारत और चीन को तेल बेचने में कोई कटौती नहीं करना चाहता है।

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