
नई दिल्ली। प्रतिवर्ष 8 मार्च को विश्व की प्रत्येक महिला के मान-सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। ऐसे में महिलाओं के प्रति सकारात्मक नजरिया अपनाना बेहद जरूरी है। क्योंकि उनकी मौजूदगी का आलम यह है कि उनके कारनामों से आज पूरे विश्व में उनका परचम लहरा रहा है।
वर्तमान समय में देश-विदेश की महिलाएं अपने हौसलों की उड़ान से दुनिया भर में ऐसी जगह स्थापित कर ली है। जिसके लिए सरकारें और समाजसेवियों को मजबूरन एक अलग तरीके से उनके चरित्र और व्यवहार को परिभाषित करना पड़ा है।
कोई महिला पॉयलट बनकर गगन सखी के रूप में खुले आसमान में लोगों को एक देश से दूसरे देश का सफ़र करा रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ सरहद पर अपने जान की फ़िक्र किए बगैर अपने वतन की रक्षा कर रही हैं।
ऐसे में अगर हम बात करे भारतीय संस्कृति की तो इस देश में महिलाओं के प्रति वेद और उपनिषद के आधार पर जो सम्मान उनको हासिल है। वह अपने आप में अद्भुत है। भारत जैसे देश में नारियों का स्थान और महत्व किसी अलौकिकता की पराकाष्ठा से कम नहीं है।
यत्र नारी तत्र देवता
संस्कृत भाषा में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:’ अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता भी निवास करते हैं। इस श्लोक का मतलब साफ़ है कि अगर आप नारी का सम्मान नहीं करते हैं, तो निश्चित तौर पर आप इस धरा के एक ऐसे व्यक्ति है जिसका समाज से कोई भी सरोकार नहीं है।
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हमारे देश और समाज में महिलाओं और पुरुषों को बराबर समानता का अधिकार संवैधानिक रूप से प्राप्त है। जिसके आधार पर उनके साथ किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जा सकता है।
महिलाओं की संवैधानिक अधिकार का इतिहास
आजादी के 72 साल बीत जाने बाद भी यदि हम कानूनी दृष्टिकोण से नारी के प्रति अपराधों को रोकने के लिए बनाये गये अधिनियमों की विवेचना करें, तो स्पष्ट होता है कि हमारे देश में महिलाओं की गरिमामयी स्थिति को बनाये रखने के लिए बहुत सारे कानून अभी भी मौजूद हैं।
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लेकिन शिक्षा के अभाव में कानूनों की जानकारी उनकों नहीं मिल पाती। यहां तक कि अधिकांश महिलाओं को पता ही नहीं हो पाता कि उनको कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे में धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं। भारत में आज महिलाओं का वर्चस्व एयर फोर्स, आर्मी, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
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