अधर में अटके पेरिस जलवायु समझौते को बचाया जा सकेगा?

नई दिल्ली। उत्तरी थाईलैंड में दो महीने पहले एक गुफा में 18 दिनों तक फंसे रहे 12 बच्चों और थाई फुटबॉल टीम के कोच को जीवित बचा लिया गया था। कई लोगों ने इसे चमत्कार माना था।

जलवायु समझौते

दूसरी तरफ, दक्षिण थाईलैंड में नौ सितंबर को समाप्त हुए छह दिवसीय संयुक्त राष्ट्र विशेष जलवायु सम्मेलन में जलवायु समझौते को बचाया नहीं जा सका है।

पेरिस जलवायु समझौता एक साल से तब से लटका हुआ है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते से हटने की अपनी आधिकारिक योजना की घोषणा की थी।

हालांकि सैकड़ों अमेरिकी महापौरों और हजारों व्यवसायियों -और यहां तक कि फ्रांस जैसे सहयोगी भी- ट्रम्प के समझौते से हटने के परिणामों से पार पाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह समझौता खतरनाक रूप से अपने अंत के करीब पहुंच चुका है।

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यह एक अच्छी खबर रही है कि पेरिस में 12 दिसंबर, 2015 को सर्वसम्मति से स्वीकृत होने के एक वर्ष के अंदर ही पेरिस समझौता चार नवंबर, 2016 को लागू कर दिया गया था। लेकिन, अभी तक इसने काम करना शुरू नहीं किया है, क्योंकि इसकी पद्धतियों, प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों पर 180 पक्षों (पेरिस समझौते को मंजूरी देने वाले देशों) के बीच अभी तक सहमत नहीं बन पाई है। दरअसल, पेरिस समझौते अपने वर्तमान रूप में एक आशय-पत्र से ज्यादा कुछ नहीं है।

पेरिस में जिस समयसारिणी पर हसमति बनी थी, उसके अनुसार इन ‘नियमों’ को 2018 से पहले तैयार हो जाना चाहिए। मई 2018 में बॉन में युनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की सहायक संस्थाओं की वार्षिक बैठक में निराशाजनक प्रगति के बाद बैंकाक जलवायु सम्मेलन कार्यक्रम का एक विलंबित संस्करण था। दिसंबर में पोलैंड में होने वाले पक्षों के 24वें सम्मेलन (सीओपी-24) से पहले बैंकाक जलवायु सम्मेलन अंतिम प्रमुख वार्ता बैठक थी। पोलैंड सम्मेलन में पेरिस समझौता मिशन मोड में होगा।

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बैंकाक की कसरत योजना में प्रगति के रूप में सामने आई, लेकिन इसके कार्यान्वित होने के इसके उद्देश्य में एक रुकावट आ गई। पेरिस समझौता विकासशील देशों के लिए शमन और स्वीकृति, बाजार तंत्र की तैनाती, सर्वेक्षण और पारदर्शिता के कालचक्र, रिपोर्टिग में विकासशील देशों के लचीलेपन के लिए धन मुहैया कराने की एक जटिल भूलभुलैया में फंस गया है।

बैंकाक में, विकसित देशों ने निजी क्षेत्र, परोपकार, एफडीआई और सकल घरेलू उत्पाद के 0.7 प्रतिशत नियमित अंतर्राष्ट्रीय विकास सहायता के जरिए उपलब्ध कराई गई सभी धनराशि को, संकल्पित 100 अरब डॉलर के हिस्से के रूप में गिनती करने का प्रस्ताव दिया।

उन्होंने वित्तीय रिपोर्टिग नियमों को आसान करने का भी प्रस्ताव किया, जिसके कारण ‘अतिरिक्त जलवायु वित्तपोषण’ पर समझौता सामने आया। फिर भी, अधर में अटके पेरिस समझौते का बचाव लगभग असंभव है।

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