18वें स्थापना दिवस पर विकास के लिए तरसता उत्तराखण्ड
रिपोर्ट—सुनील सोनकर
मसूरी। उत्तराखण्ड- राज्य बने 18 साल हो गए लेकिन जिन अवधारणों को लेकर राज्य आंदोलन किया गया था, जिस सुनहरे भविश्य के सपने संजोये गए थे। जिस राज्य के लिये आंदोलनकारियों ने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। जिस भविष्य के लिये प्रदेश के शहीदों ने अपने जीवन को कुर्बान कर दिया था। आज व अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे है।
पहाडों की रानी मसूरी से ही उत्तराखण्ड राज्य को लेकर पहली बैठक की गई थी और यहीं से उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड बनाने की अलक का जगाया गया था। जिसके बाद पूरे प्रदेश में यह मांग तेजी से उठाई जाने लगी। 1 सितंबर को खटीमा गोली गांड व 2 सिंतबर को मसूरी गोली कांड ने मानों पूरे उत्तराखड़ वासियों में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश पैदा कर दिया ओर लोग अपने घरों से निकल कर अलग राज्य की मांग को लेकर सडको पर उतर गए। जिसको देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई द्वारा उत्तर प्रदेष से अलग का उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण किया गया ओर 9 नंवबर को उत्तराचाण्ड की स्थापना हुई।
वर्तमान में भी उनके द्वारा देखे गए सपने कोसो दूर भी नजर नही आ रहे है, जिसके कारण राज्य में हताशा और निराशा का महौल बना हुआ है। उत्तराखण्ड बनने के बाद कई सरकारे आई, कई मुख्यमंत्री बने परन्तु दुर्भाग्यवष किसी ने भी वह उत्तराखण्ड बनाने की कोशिश नहीं की जिस उत्तराखण्ड की शहीदों और आदोलनकारियों ने कलपना की थी।
9 नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड की स्थापना हुई प्रदेश वासियों में खुशी का ठिकाना नही था, लोगो को नये प्रदेश बनने पर काफी उम्मीद थी कि प्रदेश के गठन के बाद पहाडी क्षेत्रो का विकास होगा, प्रदेश से पलायन रूकेगा, युवाओं को रोजगार मिलेगा परन्तु हुआ सब उलटा, आज पहाड की पहाड खाली हो गए है। युवाओं ने रोजगार के लिये प्रदेश से बाहर का रूख कर लिया है। प्रदेश में मूलभूत सुविधिओं का अभाव है अभी भी कई गांव ऐसे है जहां पर सडक तक नही है। ऐसे में सोचा जा सकता है कि इन 18 सालों में प्रदेश के जनप्रतिनिधियों ने मात्र प्रदेश की जनता को बेवकूफ बनाकर लूटने का काम किया है। कई लोगो का यह भी मानना है कि अगर आज उत्तराखण्ड उत्तरप्रदेश का हिस्सा होता तो आज के मुकाबले काफी कुछ तरक्की इस क्षेत्र की होती।
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लोगो कि माने तो अलग राज्य इसलिए बनाया गया था कि अपना राज्य होगा तो विकास तेजी से होगा, समस्याओं का समाधान त्वरित गति से होगा, गांवो तक शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूत सुविधायें मिलेगी। महिलाओं के सिर से पानी का बंटा व पीठ से घास व लकडी को बोझ उतरेगा, यहां के युवा पलायन नही करेगे तथा यहीं पर ही उनको रोजगार की व्यवस्था उपलब्ध हो जायेगी परन्तु सारे सपने सपने ही बन कर रहे गए। लोगों की माने तो अगर अलग राज्य बनने का फायदा मिला तो जनप्रतिनिधियों को जिन्होने अलग—अलग समय में प्रदेश में अपनी सरकारे बनाई और प्रदेश को लूटकर अपने घरों को भरने का काम किया किसी ने भी प्रदेश के लोगों के बारें में नही सोचा जिससे प्रदेशवासी खासकर पहाडों और गांव में रह रहे लोग दुखी और मायूस है।
राज्य निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले आदोलनकारी भी आज काफी आहत है कई आंदोलनकारी तो आज भी ऐसे है, जिनका चिंहीकरण नही हो पाया है, वहीं राज्य आंदोलनकारियों को सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधायें भी नही दी जा रही है, वहीं आज भी ऐसे आंदोलनकारी है, जिनको अपनी पहचान के लिये दर दर की ठोकरे खानी पड रही है। सरकार द्वारा आदोलनकारियों के लिये कई घोषणाऐं की जाती है परन्तु धरातल पर देखें तो कुछ ही घोषणानाओं पर काम हुआ है। ऐसे में आंदोलनकारी भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है।