
कोरोना वायरस के आतंक को देखत हुए पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन कर दिया गया. ऐसे में जो जहां था वो वहीं रह गया. कई प्रवासी मजदूरों ने पलायव करना शुरु कर दिया और अपने-अपने घरों में लौटने लगे. ऐसे में सुरक्षात्मक दृष्टि से उन सभी को प्रदेशों में एंट्री नहीं दी गई और उनके वहीं पर रहने के इंतजाम किए गए. अब खबर आ रही है कि लॉकडाउन को बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में उत्तराखंड के रुड़की में राहत शिविरों में रहने वाले प्रवासी कामगारों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है.

इसी कड़ी में लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की आहट के बीच लक्सर कस्बे के राहत शिविरों में रह रहे 50 से अधिक लोगों ने रविवार रात भूख हड़ताल कर दी। उन्होंने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने उन्हें घर भेजने की व्यवस्था नहीं की तो वे खाना नहीं खाएंगे। सूचना पाकर मौके पर पहुंचे बीडीओ ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे। बाद में एसडीएम के आश्वासन पर उन्होंने खाना खा लिया।
लॉकडाउन के बाद प्रवासी कामगारों को पैदल ही घर लौटते देख केंद्र सरकार के आदेश पर 29 मार्च को प्रदेश की सारी सीमाएं पूरी तरह सील कर दी गई थीं। पुलिस-प्रशासन ने कस्बे से गुजर रहे बाहर के लोगों को रोककर राहत शिविरों में ठहराया था। प्रशासन ने लक्सर में चार राहत शिविर बनाए हैं, जिनमें दिल्ली, यूपी और बिहार के करीब 175 लोग ठहरे हैं। इन्हें नगर पालिका और समाजसेवी लोग भोजन दे रहे हैं।
रविवार शाम को लक्सर के कुछ समाजसेवी युवराज पैलेस के शिविर में खाना लेकर पहुंचे तो 62 में से केवल दस लोगों ने ही खाने के पैकेट लिए। बाकी लोग खाना लेने से इंकार कर भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनका कहना था कि जब वे लौट रहे थे तो उस समय प्रशासन ने केवल दो हफ्तों की बात कहकर शिविर में रोका था। साथ ही 14 अप्रैल के बाद घर भेजने की बात कही थी। जिस तरह से अब लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ाने की बात सामने आ रही है, उससे लगता है कि उन्हें तब तक यहीं रहना पड़ेगा।
सूचना मिलते ही बीडीओ चंदन लाल राही मौके पर पहुंचे और राहत शिविर में लोगों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। बीडीओ का कहना है कि राहत शिविर में जिन लोगों को रोका गया है, उन्हें सरकार के आदेश के बाद ही घर भेजा जा सकता है।