पर्यावरण समेत मानव जाति पर मंडरा रहा खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, विनाश की ओर ले जा रहा ‘विकास’
सिडनी। विश्व के सभी देश विकास की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़कर अंधाधुंध तरीके से सड़क निर्माण और ढांचागत परियोजनाओं का विकास करने में जुटे हैं, जो मानव जाति को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय खतरों की ओर ले जा रहा है। क्वींसलैंड की जेम्स क्रुक यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक विलियम लॉरेंस ने कहा, “हमने दुनिया भर में प्रमुख सड़कों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की जांच-पड़ताल की है।”
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उन्होंने कहा, “यह देखना हैरत भरा रहा कि इनके पीछे कितने खतरे छुपे हुए हैं।”
उच्च-वर्षा वाले क्षेत्रों और एशिया-प्रशांत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में सबसे जरूरी प्राथमिकता लाखों किलोमीटर लंबी नई सड़कों की योजनाओं व उनके निर्माण तक सीमित है।
लॉरेंस ने कहा, “बारिश के कारण सड़कों पर गढ्ढे, बड़ी-बड़ी दरारें और भूस्खलन जैसी समस्याएं बहुत तेजी से होती हैं। ये परियोजनाएं शीघ्र ही बड़े धन अपव्यय में बदल जाती हैं।”
अगले तीन सालों में एशिया के विकासशील देशों में पक्की सड़कों की लंबाई दोगुनी होने की संभावना है।
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उन्होंने कहा, “गीले, दलदली या पहाड़ी क्षेत्रों के लिए योजनाबद्ध नई सड़कों का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, इससे केवल नुकसान होगा और यह केवल आर्थिक मानदंडों पर आधारित है।”
कोस्टा रिका में अलॉयंस ऑफ लीडिंग एनवायरमेंटल रिसचर्स एंड थिंकर्स (एएलईआरटी) के शोधार्थी व अध्ययन के सह-लेखक इरीन बर्गयूस ने कहा, “अगर आप पर्यावरण और सामाजिक लागतों को जोड़ते हैं, तो निष्कर्ष नई सड़कों के खिलाफ ही सामने निकलकर आएगा। खासकर वन क्षेत्रों में, जहां उच्च पर्यावरणीय मानक मौजूद हैं।”
लॉरेंस के अनुसार, “जनता अक्सर खराब सड़कों के भारी कर्ज का हर्जाना भुगतती है। कुछ सड़क निर्माणकर्ता और राजनेता समृद्ध होते हैं और वास्तविक विकास के अवसर आसानी से गंवा दिए जाते हैं।”