Mulayam Singh Yadav से जुड़े ये किस्से हमेशा याद किए जाएंगे

उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ( Mulayam Singh Yadav ) हो गया है। देश के सबसे सूबे की सियासत में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई और समाजवादी पार्टी की स्थापना की। आइये जानते हैं नेता जी के जीवन से जुड़े कई रोचक किस्सों के बारे में।

हमलावरों ने मुलायम सिंह पर चलाई 9 गोलियां

Mulayam Singh Yadav पर 8 मार्च 1984 को दो बाइक सवार हमलावरों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाई थीं। उस समय वह लोकतांत्रिक मोर्चा उत्तर प्रदेश के स्टेट प्रेसिडेंट हुआ करते थे। मुलायम इटावा के दौरे पर गए थे। इसी बीच अचानक उनकी कार पर दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली चला दी। कार पर कुल 9 राउंड फायरिंग हुई। इस घटना में मुलायम और उनके सहयोगी की मौत हो गई थी।
1984 के बाद मुलायम सिंह कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ और भी अधिक मुखर हो गए। उन्होंने जिलेवार दौरा शुरू किया। 1989 में राजीव गांधी की सरकार केंद्र से और एनडी तिवारी की सरकार यूपी से चली गई। इसके बाद नए सीएम के लिए जनता दल के विधायकों की बैठक हुई। इस बैठक में मुलायम के मुकाबले में चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह थे। हालांकि चंद्रशेखर के सहयोग से मुलायम सिंह यादव ही सीएम बन गए।

जब कारसेवकों पर चलवाई गोली, सरकार से हुए बाहर
Mulayam Singh Yadav जब1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 90 के दौर में देशभर में मंडल-कमंडल की लड़ाई शुरू हो चुकी थी। इसी बीच 1991 में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की शुरुआत की गई। इस बीच कारसेवक जैसे ही विवादित ढांचे के करीब पहुंचे तो मुलायम सिंह यादव ने सुरक्षाबलों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। सुरक्षाबलों के द्वारा की गई इस कार्रवाई में कई कारसेवक मारे गए और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो गए। बाद में बताया गया कि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 28 लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। लेकिन उससे पहले ही मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा भंग की सिफारिश कर दी। दोबारा विधानसभा चुनाव हुए लेकिन जनता ने मुलायम सिंह की पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया।

भाजपा को हारने के लिए कांशीराम के साथ लड़े चुनाव
6 दिसंबर 1992 को बाबरी के विवादित ढांचे को कारसेवकों के द्वारा गिरा दिया गया। इस घटना के बाद तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह के द्वारा इस्तीफा दे दिया गया। राज्य में राष्ट्रपति शासन के छह माह बाद विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भी भाजपा की जीत तय थी, लेकिन मुलायम सिंह ने कांशीराम को साथ में ले लिया। कांशीराम ने मुलायम के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इस समर्थन का परिणाम चुनावी रिजल्ट पर भी दिखा।

गेस्ट हाउस कांड के बाद राजनीतिक भविष्य को लेकर शुरू हुई चर्चाएं

2 जून 1995 को लखनऊ के गेस्ट हाउस में जो कुछ भी हुआ उसके बाद बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया। इसके लिए गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक बुलाई गई। मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने हंगामा शुरू कर दिया। इस बीच मायावती की जान पर खतरा बन आया। हालांकि सुरक्षाकर्मियों की वजह से मायावती बच गई। मायावती ने आरोप लगाया कि सपा कार्यकर्ता उन्हें मारना चाहते थे जिससे बसपा को खत्म किया जा सके। इस घटना के बाद मुलायम की सरकार गिर गई और मायावती ने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। इसके बाद मुलायम और उनके भाई शिवपाल के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ। इस प्रकरण के बाद मुलायम के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई। हालांकि मुलायम ने बड़ा दांव खेल केंद्र का रुख किया। 1996 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटें मिलने और 13 दिन की अटल सरकार गिरने के बाद वह रक्षामंत्री बनाए गए।

आर्थिक तंगी से जूझ रही सपा को दी संजीवनी

2007 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद सपा 100 सीटों के भीतर ही सिमट गई। चुनावी हार की समीक्षा में संसाधनों की कमी की बात सामने आई। इस बीच अमर सिंह के सहयोग से मुलायम सिंह ने उद्योगपतियों का साथ लेना शुरू किाय। इसके बाद फाइव स्टार होटलों में सपा की बैठकें होना शुरू हो गई। बदलाव के बीच सपा सबसे ज्यादा चंदा हासिल करने वाली पार्टियों की लिस्ट में भी शामिल हुई।

जब Mulayam Singh Yadav पर चली थीं 9 गोलियां, चलाने वाला कौन था?

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