धारा 377 के बाद समलैंगिकों की अंतिम लड़ाई है बाकी, चाहिए शादी का भी अधिकार

नई दिल्ली। सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकता को ‘अपराध’ की श्रेणी से निकाल दिया है, लेकिन समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने को लेकर अभी एक बड़ी लड़ाई लड़ना बाकी है। यह कहना है एलजीबीटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली पूजा श्रीवास्तव का। बकौल पूजा, एक साल पहले तक उम्मीद छोड़ चुकी थीं कि वह कभी यह दिन देख पाएंगी।
धारा 377 के बाद समलैंगिकों की अंतिम लड़ाई है बाकी, चाहिए शादी का भी अधिकार
पूजा अपने पार्टनर के साथ खुश हैं और उससे शादी करना चाहती हैं। वह अदालत के फैसले पर अपनी खुशी जताते हुए कहती हैं, “फैसला बहुत देर से आया, लेकिन दुरुस्त आया। मैं एक साल पहले तक उम्मीद छोड़ चुकी थी कि कभी अपनी जिंदगी में इस पल की गवाह बन भी पाऊंगी, लेकिन खुशी है कि हमारी भावनाओं की कद्र की गई और हमारे प्यार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया।”

पूजा (42) ने आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा, “मैं अपने पार्टनर के साथ शादी करना चाहती हूं, लेकिन अभी इसे कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। उम्मीद करती हूं कि जिस तरह हमें प्यार करने का कानूनी हक दिया गया है, ठीक वैसे ही शादी को भी कानूनी दर्जा मिले।”

पूजा जब सात साल की थीं, उन्हें अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन का पता चला, लेकिन इसे अपने परिवार और समाज को समझाने में उन्हें 30 से 35 साल लग गए। वह कहती हैं, “मैं सातवीं क्लास में थी, तभी अपनी क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की की ओर आकर्षित हुई। मुझे तो यह सब सामान्य लगा, लेकिन धीरे-धीरे मेरे दोस्तों और आसपास के लोगों ने मुझे समझाया कि यह सामान्य नहीं है।”
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वह कहती हैं, “मैं हूं तो बहुत बोल्ड, लेकिन अपने ही परिवार को समझा नहीं पाई। उन्हें मुझे एक्सेप्ट करने में 35 साल लग गए। जहां भी जाती थी, ताने मारे जाते थे। इस वजह से कई बार नौकरियों से हाथ भी धोना पड़ा। घर, ऑफिस, पड़ोस हर जगह मजाक उड़ाया गया।”

एलजीबीटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली पूजा कहती हैं, “हमें प्यार करने या ‘लिव इन’ में रहने का समान अधिकार है, लेकिन हम लोग अभी भी शादी नहीं कर सकते। मैं भी अपनी पार्टनर से शादी करना चाहती हूं। हालांकि, इसे अभी कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। अभी यह लड़ाई लड़ना भी बाकी है।”

वह सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ हिंदूवादी संगठन द्वारा हस्ताक्षर अभियान शुरू किए जाने के सवाल पर बिंदास होकर कहती हैं, “ये लोग जो भी करें, हमें फर्क नहीं पड़ता। माननीय अदालत ने हमें अब समान अधिकार दे दिया है। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे बेवकूफ लोग और इस तरह की संस्थाओं के अपने एजेंडे होते हैं, जिसके जरिए ये अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं। यह फैसला संवैधानिक पीठ ने लिया है तो इसमें ज्यादा गुंजाइश नहीं है। यह सर्वमान्य है।”

वह कहती हैं, “हमें दुख सिर्फ इस बात है कि हमें कानून की नजर में अपराधी माना जाता है। हम लोग ज्वाइंट प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकते, एक साथ खाता नहीं खुलवा सकते। बीमा पॉलिसी में नॉमिनी नहीं बना सकते। हमें हर तरह के अधिकारों से वंचित रखा गया था। मुझे अपने सेक्स ओरिएंटेशन की वजह से कई बार नौकरी छोड़नी पड़ी। दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी, ऑफिस में हर लोग ताना मारते थे, मजाक उड़ाते थे। हम लोगों ने बहुत प्रताड़नाएं सही हैं और यह भी सच है कि आगे भी सहते रहेंगे, क्योंकि समाज एक फैसले से नहीं बदल सकता।”

पूजा चाहती हैं कि अब सरकार एलजीबीटी समुदाय के लोगों की शादी को भी कानूनी दर्जा दे। वह कहती हैं, “अमूमन लोग शादी को बच्चे पैदा करने से जोड़ देते हैं। शादी का मतलब सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं होता। इस सोच से बाहर निकलना होगा और शादी और बच्चे पैदा करने को दो अलग-अलग रूपों में देखना शुरू करना होगा।”

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