भाजपा का वो ‘लाल’ जिसके रथ की चाल ने कम कर दिया कुर्सी का फासला!

अमित विक्रम शुक्ला

राजनीति के हर एक पहलू को भलीभांति समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं। लेकिन जिन्हें सियासत के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर गुजरने में ही सत्ता की हनक दिखाई देती है। वो जरुर राजनीतिक पहलुओं के मायने भांप लेते हैं।

भारतीय जनता पार्टी

वैसे तो नेतागिरी शब्द की एक अलग ही पहचान बन चुकी है। वजह कुछ भी हो। लेकिन युवाओं के चेहरे पर ये शब्द मुस्कान जरुर ला देती है। आजकल की सियासी नब्ज को टटोलने के लिए युवा एक बेहद आसान विकल्प है। जिसकी बातों में आपको एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में समाज की कुरीतियों से लड़ने की चाहत और प्रधानमंत्री तक को आइना दिखाने का साहस दिखता है।

लेकिन क्या आपको पता है कि आज की राजनीति में जो व्यक्ति पहचान खो रहा है। असल में वही कुशल राजनीतिज्ञ है।

आज के इस ‘राजनीतिक सफरनामा’ में हम बात करेंगे। उस राजनेता की, जिसके दम पर मोदी ही नहीं। बल्कि भारतीय जनता पार्टी खुद सत्ता में आई है। दरअसल, हम उनकी बात करने जा रहे हैं। जिनकी चर्चा आज के समय में कोई नहीं करना चाहता।

नाम लाल कृष्ण आडवाणी। इस नाम के अन्दर ही कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक का सियासी खींचतान मौजूद है।

आडवाणी जी जन्म 8 नवंबर, 1929, कराची (वर्तमान पाकिस्तान में) हुआ। वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ट नेता और भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री हैं। भाजपा को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में आडवाणी का प्रमुख श्रेय रहा। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दो बार (1998 और 1999) केंद्रीय ग्रहमंत्री नियुक्त हुए। आडवाणी ने पार्टी को पुनर्जीवित कर मज़बूत बनाने में प्रमुख रूप से उत्तरदायित्व  निभाया है।

1980 के दशक के आरंभ में भारत के राजनीतिक मानचित्र पर अस्तित्वहीन यह पार्टी आज भारत की सबसे मज़बूत राजनीतिक शक्तियों के रूप में उभरी है।

शिक्षा

लालकृष्ण आडवाणी की शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई थी। बाद में भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की।देश भक्ति के विचारों ने उन्हें केवल 14 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। और तभी से उन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया हुआ है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

ये कदम सियासी फायदे कहीं ज्यादा बढ़कर देश हित के लिए था। यही वजह है कि आज वे भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं।

लालकृष्ण आडवाणी के दो बच्चे हैं। एक पुत्र जयंत है और एक पुत्री प्रतिभा दोनों अपना प्रोफेशनल जीवन जी रहे हैं। जयंत दिल्ली में अपना कारोबार चलाते हैं। जबकि प्रतिभा आडवाणी एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं।

राजनीतिक जीवन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही आडवाणी का पहला राजनीतिक अखाड़ा रहा। देश के विभाजन के बाद उन्होंने राजस्थान में संगठन की गतिविधियों का कार्यभार संभाला। 1951 में जब डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की, तो आडवाणी पार्टी की राजस्थान इकाई के सचिव बने।

असल मायनों में आडवाणी ने यहीं से सियासत की सीढ़ी पर पहला कदम रखा। बाद में उन्हें दिल्ली‍ जनसंघ की इकाई का सचिव नियुक्त किया गया।

भारतीय जनसंघ

1970 में वह राज्यसभा के सदस्य‍ बने और 1989 तक इस पद पर बने रहे। 1973 में उन्हें भारतीय जनसंघ को अध्य्क्ष चुना गया और 1977 तक उन्होंने पार्टी का संचालन किया।

भारतीय जनसंघ

जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त होने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया।

मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रेस सेंसरशिप समाप्त की, आपातकाल के दौरान बनाए गए प्रेस-विरोधी क़ानूनों को निरस्त किया और मीडिया की स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए सुधारों की शुरुआत की।

भारतीय जनता पार्टी का गठन

मोरारजी देसाई सरकार के पतन के फलस्वरूप भारतीय जनसंघ का विभाजन हो गया। आडवाणी तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में भारतीय जनसंघ के लोगों ने 1980 में एक राजनीतिक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।

भारतीय जनता पार्टी

शुरुआती वर्षों में भारतीय जनता पार्टी को नाममात्र का जन समर्थन मिला और 1984 के संसदीय चुनावों में यह लोकसभा की सिर्फ दो सीटें जीत पाई। पार्टी को लोकप्रिय बनाने तथा जनता को इसके कार्यक्रम से अवगत कराने के लिए आडवाणी ने 1990 के दशक में देश भर में कई रथ यात्राएं (राजनीतिक अभियान) की। इनमें से पहली यात्रा हिंदुओं के अत्यंत पूज्य भगवान राम पर केंद्रित थी।

राम यात्रा

राम रथ यात्रा 25 सितम्बर, 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिन पर सोमनाथ से शुरू हुई थी और जिसका 10,000 कि.मी. की यात्रा करने के बाद 30 अक्तूबर को अयोध्या में समापन किया जाना था।

आडवाणी

यात्रा का सीधा सा सन्देश जनता में एकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना जागृत करना, परस्पर समझदारी बढ़ाना तथा जनता को सरकार की तुष्टिकरण तथा अल्पसंख्यकवाद की राजनीति के बारे में समझाना था।

इस यात्रा को अभूतपूर्व सफलता मिली राजनीतिक तौर पर भीड़ जुटाने में ऐसी लोकप्रियता कभी हासिल नहीं हुई। इस यात्रा ने जनता द्वारा दर्शायी गई लोकशक्ति और दिल्ली के शासकों द्वारा प्रस्तुत राजशक्ति के बीच तुलना की और लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा।

बाबरी विध्वंस

लेकिन इसी दौर में छह दिसंबर साल 1992 को भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और कई हिंदुत्ववादी संगठनों के नेताओं की मौजूदगी में इन संगठनों के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने फ़ैज़ाबाद के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को घेर लिया और सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद मस्जिद को ढहा दिया था।

ये संगठन बाबरी मस्जिद परिसर में राममंदिर बनाने की मांग कर रहे थे और उस मांग पर आज भी कायम हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था कि बाबरी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुँचने दिया जाएगा। लेकिन वो इसे निभा नहीं पाए थे।

बाबरी विध्वंस

इस घटना के बाद ही भारतीय जनता पार्टी एक हिंदुत्ववादी पार्टी बनकर निकली। समय और सियासत की मार में मंदिर-मस्जिद के सहारे कई राजनीतिक दलों से अपनी सियासी रोटियां सेंकी। जिसकी तपिश आज भी बरक़रार है।

मेगा एंट्री ऑर मोदी एंट्री

आडवाणी की सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की यात्रा के कई ऐतिहासिक मायने हैं, इतिहास को बदला नहीं जा सकता। सबसे बड़ा तो यही तथ्य है कि नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय पटल पर अवतरण इसी रथ यात्रा के जरिए हुआ।

बाबरी विध्वंस

13 सितंबर 1990 को मोदी ने गुजरात इकाई के महासचिव (प्रबंधन) के रूप में रथ यात्रा के औपचारिक कार्यक्रमों और यात्रा के मार्ग के बारे में मीडिया को बताया। इस तरह मोदी पहली बार राजनीति के राष्ट्रीय मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका में सामने आए थे। पहली बार मोदी मीडिया रंगमंच के लिए प्रमुख पात्र बन गए थे, इतने बड़े कार्यक्रम की सबसे ज्यादा सूचनाएं अगर किसी के पास थीं, तो वो थे नरेंद्र मोदी।

जनादेश यात्रा

आडवाणी ने निष्ठुर, लोकतंत्र-विरोधी और जन-विरोधी उपायों के विरुद्ध जनमत जुटाने हेतु नेतृत्व प्रदान किया। आडवाणी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में देश की चारों दिशाओं से यात्रा आरंभ करने की योजना बनाई।

चारों यात्राएं 11 सितम्बर, 1993 को स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन से देश की चारों दिशाओं से यात्रा आरम्भ हुईं। आडवाणी ने मैसूर से यात्रा का नेतृत्व किया था। भैरोसिंह शेखावत ने जम्मू से, मुरली मनोहर जोशी ने पोरबंदर से और कल्याण सिंह ने कलकत्ता (अब का कोलकाता) से यात्रा आरंभ की थी।

रथ यात्रा

14 राज्यों और 2 केन्द्रशासित क्षेत्रों से यात्रा करते हुए यात्री एक बड़ी रैली में 25 सितम्बर को भोपाल में एकत्र हुए। जनादेश यात्रा को जबरदस्त सफलता भी मिली थी।

चुनाव क्षेत्र

लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव क्षेत्र गाँधीनगर, गुजरात है।

लालकृष्ण आडवाणी

सदस्यता

#राज्य सभा, 1970-1989 (चार बार)

#विपक्ष के नेता, राज्य सभा, 1979-1981

#विपक्ष के नेता, लोक सभा, 1989-1991 और 1991-1993

केंद्रीय कैबिनेट मंत्री

#सूचना और प्रसारण, 1977-1979,

#गृहमंत्री, 1998-1999 और 13 अक्टूबर 1999 से 29 जून 2002

#उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 29 जून 2002 से 1 जुलाई 2002

#उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री तथा कोयला और खान मंत्री, 1 जुलाई 2002 से 26 अगस्त 2002

#उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 26 अगस्त, 2002 – 20 मई, 2004

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