बच्ची की मौत से सहम गया दिल, कर डाला वो काम जो सरकार भी न कर पाई

रिपोर्ट- अनूप कुमार

कुशीनगर। दशरथ मांझी का आपने तो नाम सुना ही होगा जिन्होंने अपने छेनी-हथौड़ी से एक बड़ा पहाड़ काटकर एक सड़क बना दी थी। जो समाज को प्रेरणा देती है कि इरादे मज़बूत हो तो कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत बन ही जाती है। कुछ इसी तरह का कार्य  उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रहने वाले रिटायर संतू प्रसाद ने कर दिखाया है।

 

पुल निर्माण

कुशीनगर जिले के कप्तानगंज ब्लाक क्षेत्र  ग्राम भड़सर खास के माफी टोला के रहने वाले संतू प्रसाद एक रिटायर कर्मचारी है। जिन्होंने बांस-बल्ली के अस्थाई पुल की जगह पक्के पुल का निर्माण करवा कर गांव को बड़ी राहत दी है। इस पुल के बनने की कहानी भी बड़ी अजीब है जुलाई 2013 में यह पुल अचानक टूट गया जिससे एक बच्ची नाले में जा गिरी और उसकी मौत हो गई। गिरी बच्ची की मौत देखकर संतू प्रसाद विचलित हो गए। उन्होंने इस अस्थाई पुल की जगह स्थाई पुल बनाने की ठान ली।

उन्होंने सोचा कि यहां पुल बनना चाहिए। भले ही जीवनभर की पूंजी लग जाए। उन्हीं दिनों संतू रेलवे पैटमैन की नौकरी से रिटायर होकर गांव लौटे थे। उन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद मिली 13 लाख रुपये में से चार लाख रुपये खर्चकर एक पुल का निर्माण करवा डाला। संतू प्रसाद ने पुल बनाने का बीड़ा जब उठाया तो पीएफ के रुपये में से 10 लाख रुपये वह बेटों को दे चुके थे। बाकी तीन लाख रुपये से काम शुरू कराया।

पांच पायों वाले पक्के पुल का निर्माण देख गांव के कई लोग भी साथ आए किसी ने सीमेंट दी तो किसी ने लोहा। संतू के साथ तमाम लोगों ने श्रमदान भी किया। आखिर में पैदल और साइकिल-बाइक चलने लायक पुल बन गया। इस निर्माण में ग्रामीणों के श्रमदान ने संतू प्रसाद को और मजबूती प्रदान की जिस वजह से  70 फीट लंबा स्थाई पुल बना कर एक इतिहास बना डाला। डेढ़ बीघा जमीन के मालिक संतू की इस पहल ने 12 गांवों के लोगों को राहत दी। पुल के नज़दीक के गांव सोमली, पेमली, बरवां, जमुनी, नारायन भड़सर, भड़सर के 14 टोलों समेत अन्य गांव भी जुड़ गए इस पुल से करीब दस हजार लोगों को कप्तानगंज ब्लॉक मुख्यालय से दूरी अब पांच किलोमीटर न जा कर एक किलोमीटर सिमट के रह गई है।

कई दशक से जिस जगह बांस का पुल था। वहां अब पक्के पुल का निर्माण होने से अब इस गांव के टोले के लोग समय-समय पर मरम्मत करके इसे चलने लायक बनाए रखते थे। आपको जान कर हैरानी होगी कि कई सांसदों-विधायकों तक ग्रामीणों ने फरियाद लगाई थी पर कोई सुनवाई नहीं हुई थी।

राजनीतिक लोगों से सिर्फ ग्रामीणों को आश्वासन ही मिला था। संतू का कहना है कि मुझे सरकार के कार्य पर विश्वास था पर उनके बिचौलियों पर नही, अब पुल बन चुका है तो मैं रोज़ पुल पर जाता हूं। कोई टूट-फूट दिखे तो खुद ठीक करता हूं।

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पुल निर्माण की सूचना पर क्षेत्रीय विधायक रामानंद बौद्ध का कहना है कि वह संतू प्रसाद को उनके प्रयास के लिए सम्मानित करेंगे। साथ ही यह भी बोले कि हादसे भी इतिहास रचने की प्रेरणा दे सकते हैं, यह हम गांव के रिटायर रेलकर्मी संतू प्रसाद से प्रेरणा लेते है।

संतू प्रसाद की भावनाओं का स्वागत और सम्मान करता हूं। उन्होंने अपने प्रयास से पैदल व बाइक चलने लायक पुल बनाया है। मुख्य सड़क से इस पुल तक 550 मीटर खडंजा कराया जाएगा। इस पुल की उपयोगिता का सर्वे कराकर जिला योजना में पुल का प्रस्ताव देकर नया पुल बनवाया जाएगा।

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