‘गुलाबी गैंग’ की संस्थापक ने बयां की अपने संघर्ष भरे जीवन की गाथा
रिपोर्ट- लोकेश टण्डन
मेरठ। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ उनकी आवाज बनकर खड़ी होने वाली महिला जिसने गरीब मजलूमों के अधिकार की लड़ाई के लिए अपनी जान की बाजी लगाते हुए अपने घर परिवार तक को दाव पर लगा दिया। महिलाओं का एक संगठन बना डाला जिसका नाम रखा गुलाबी गैंग। जी हां हम बात कर रहे हैं बुंदेलखण्ड की वीरता के लिए चर्चित गुलाबी गैंग की मुखिया संपत पाल की।
वैसे तो संपत पाल की कहानी खुद किसी फिल्म की पटकथा जैसी है। जिनके जीवन के आधार पर माधुरी दीक्षित की फिल्म भी बनी है गुलाबी। गैंग वर्ष 1960 में बांदा के बैसकी गांव के एक ग़रीब परिवार में जन्मी संपत पाल की 12 साल के उम्र में एक सब्ज़ी बेचने वाले से शादी हो गई थी। शादी के तीन साल बाद गौना होने के बाद संपत अपने ससुराल चित्रकूट ज़िले के रौलीपुर-कल्याणपुर आ गई थी।
ससुराल में संपत के शुरुआती साल संघर्ष से भरे हुए थे। संपत का कहना है कि जब उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ उसके पति को मार-पीट करते हुए देखा तो उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की और तब उस व्यक्ति ने इसे अपना पारिवारिक मामला बता कर उन्हें बीच-बचाव करने से रोक दिया था। इस घटना के बाद संपत ने पांच महिलाओं को एकजुट कर उस व्यक्ति को खेतों में पीट डाला और यहीं से उनके ‘गुलाबी गैंग’ की नींव रखी गई।
संपत ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, जहां कहीं भी उन्होंने किसी तरह की ज़्यादती होते देखी तो वहां दल-बल के साथ पहुंच गईं और ग़रीबों, औरतों, पिछड़ों, पीड़ितों, बेरोज़गारों के लिए लडाई लड़नी शुरु कर दी। एक बार उन्होंने गांव के एक हरिजन परिवार के घर का पानी पी लिया था जिस कारण उनका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया गया। गरीबों और मजलूमों की लड़ाई लड़ते-लड़ते लड़ते संपत इतनी आगे निकल गई कि भू माफियाओं ने उनकी हत्या करवाने तक की योजना बना डाली।
एक समय ऐसा आया कि परिवार और गांव के लोगों ने भी साथ छोड़ दिया और गांव से निकलने को मजबूर कर दिया, लेकिन संपत कमज़ोर नहीं पड़ी और गांव छोड़ अपने पति और बच्चों के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई। और यहां पर एक चाय की दुकान खोल ली। लेकिन यहां पर भी गरीब और मजलूमों और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को वो बर्दाश्त नहीं कर पायी और यहां भी महिलाओं की टीम बना ली। संपत के ये गुलाबी गैंग अब उत्तर प्रदेश के साथ साथ कर्नाटक, चेन्नई, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड तक में खड़ा हो गई है। और अब इस गैंग में 4 लाख से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी है।
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मेरठ में बन रही फिल्म “जाको राके साईया” मे अपनी रीयल लाइफ को रील लाइफ में दर्शाने के लिए अहम भूमिका निभा रही हैं। फिल्म के अभिनेता राजपाल यादव को बचाने के लिए दुल्हन के परिवार के साथ आंदोलन करेंगी। लाइव टुडे से बातचीत के दौरान उन्होने मेरठ के हालात देखते हुए कहा कि मेरठ गन्दगी के ढेर से सड़ा पड़ा है और यहां कि सड़के देखकर तो योगी जी के गढ्ढा मुक्त सड़क मिशन की बात करते हुए कहा कि यहां गढ्ढे सड़को में नहीं बल्कि सड़के गढ्ढों में हैं।
वहीं महिला सुरक्षा पर बात करते हुए कहा कि किसी सरकार की कोई गलती नही होती महिलाओं को अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद उठाना पड़ेगा और और इस दौरान उन्होनें लाइव टुडे को धन्यवाद देते हुए महिलाओं से जागरूक होने के लिए भी कहा है।