ओहियो यूनिवर्सिटी पहुंचा टेलर-मास्टर का बेटा, मिली तीन करोड़ की स्कॉलरशिप
शाहजहांपुर: यूपी के छोटे से गांव हथौड़ा बुजुर्ग में आज आनंद ही आनंद है। गांव के लाल दर्शन कुमार आनंद की प्रतिभा की गूंज हथौड़ा बुजुर्ग से लेकर अमेरिका के ओहियो स्टेट तक है। शाहजहांपुर के इस गांव के टेलर-मास्टर का 17 वर्षीय बेटा आनंद दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में शुमार ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए निकल चुका है। वह यहां से कम्प्यूटर साइंस में चार वर्षीय स्नातक कोर्स करेगा। इस पर कुल खर्च आएगा करीब तीन करोड़ रुपये। जो आनंद के पापा को नहीं चुकाना है।
तीन करोड़ की स्कॉलरशिप से मिलेगी डिग्री
आनंद ने अपनी मेधा और लगन के बूते खुद ही इसका इंतजाम किया। उसने इसके लिए प्रवेश परीक्षा दी और शतप्रतिशत छात्रवृत्ति हासिल की।
घर पर ही सिलाई का काम करके किसी तरह परिवार चला रहे आनंद के पिता वीरेंद्र कुमार के लिए तीन करोड़ रुपये शायद एक बहुत बड़ी रकम हो सकती है, क्योंकि उनकी सालाना आय एक लाख रुपये से कम है। लेकिन उनके 17 साल के बेटे ने साबित कर दिखाया है कि लगन और हौसले से बड़ा कुछ नहीं होता। वीरेंद्र का मानो अनदेखा सपना पूरा हो गया है।
बेटे की सफलता से गदगद पिता ने कहा, लल्ला ने गांव और हम सब का मान बढ़ा दिया। गरीबी और अभावों के बीच दर्शन कुमार आनंद ने गांव के प्राथमिक विद्यालय से पांचवीं कक्षा में जिलेभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
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इस बीच उसका चयन बुलंदशहर में शिव नाडार फाउंडेशन द्वारा स्थापित विद्या ज्ञान आवासीय विद्यालय के लिए हो गया। वहां कक्षा छह से बारहवीं तक इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई की। स्कूल ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए दी जाने वाली प्रवेश परीक्षाओं की भी तैयारी कराई। जिसमें इस साल दर्शन सहित स्कूल के सात बच्चों ने सफलता पाई।
दर्शन कंप्यूटर इंजीनियर बनकर पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन करना चाहता है। साथ ही अपने गृह जनपद में गरीबों के लिए विद्या ज्ञान जैसा उच्चस्तरीय स्कूल खोलना चाहता है। ताकि उस जैसे गरीब बच्चों को आगे बढ़ने का मार्गदर्शन और मौका मिल सके।
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शाहजहांपुर शहर से हथौड़ा बुजुर्ग गांव एकदम सटा हुआ है। यह गांव सीतापुर रोड पर स्थित है। गांव में मुख्य मार्ग से करीब पचास मीटर गली में बेहद साधारण से मकान में वीरेंद्र कुमार का परिवार रहता है। मकान पक्का है, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उस पर प्लास्टर भी नहीं हो सका है।
दर्शन के मुताबिक जब वह छोटा था तो उसकी दादी रामवती, जोकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं और दादा रामसेवक जो साधारण किसान थे, उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। दादी अक्सर प्राथमिक विद्यालय में आकर दर्शन की पढ़ाई को लेकर टीचर से आग्रह करती थीं। साथ ही दर्शन को भी मेहनत से पढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती थीं। दो साल पहले ही उसके दादा-दादी का देहावसान हुआ है।