‘पूजा आरती’ और ‘नमाज’ में उलझा ‘प्रेम का प्रतीक’, 400 साल पहले होती थी ताजमहल में नमाज?

आगरा। विश्व प्रसिद्ध ताज महल परिसर के भीतर ‘पूजा आरती’ और ‘नमाज’ अदा करने को लेकर हिंदू और मुस्लिम समूहों के बीच चल रही तनातनी अब आगरा में टूरिज्म के लिए चिंता का सबब बन रही है।

ताजमहल

टूरिज्म क्षेत्र के दिग्गजों को डर है कि यह विवाद आगरा में सांप्रदायिक दंगों को भड़का सकता है।

दरअसल, यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद खड़ा हुआ। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पिछले सप्ताह ताजमहल के दरवाजे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश व अधिसूचना को चस्पा किया था।

इसमें स्थानीय मुस्लिमों को केवल शुक्रवार दोपहर बाद नमाज अदा करने की इजाजत दी गई थी, जिस वक्त यह जनता के लिए बंद होता है।

वहीँ स्थानीय लोग इस रोक को हटाना चाहते हैं, ताकि वह रोजाना नमाज अदा कर सकें और शहर से बाहरी लोगों को भी नमाज अदा करने की इजाजत मिले।

जबकि दूसरी ओर ताजमहल को शिव मंदिर बताने वाले हिंदू संगठन यहां पूजा-आरती करने की धमकी दे रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी लोग यदि नमाज अदा कर रहे हैं, तो वो यहां पूजा करेंगे।

मामला तो तब भड़क गया। जब महिला ने स्मारक के इर्द-गिर्द गंगा जल छिड़का, जिससे यह विवाद और भी बढ़ गया।

1632 से ताजमहल अदा हो रही नमाज

इस विवाद को लेकर ताजमहल इंतेजामिया कमिटी के चीफ सैयद इब्राहिम हुसैन जैदी का कहना है कि यदि ताजमहल के इतिहास को देखा जाए, तो 1632 में जब ताजमहल बना था।

तब से ही यहां नमाज अदा हो रही है। लेकिन अब यहां लोग विवाद खड़ा कर रहे हैं।

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1966 में आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इमाम साबिक अली को यहां नमाज अदा करने के लिए नियुक्त किया था। वो लंबे समय तक नमाज अदा भी करते रहे, लेकिन उनका स्वास्थ्य खराब होने के बाद उनके बेटे सैयद सादिक अली यहां नमाज अदा करते हैं।

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मुस्लिम समुदाय की मांग यह है कि यदि शुक्रवार को स्थानीय मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई है, तो बाहरी मुस्लिमों को भी इसकी इजाजत दी जाए।

लेकिन इस मामले में राजनीतिकरण होने यह मुद्दा गरमा सकता है। जिससे तनाव का माहौल भी पैदा हो सकता है। इसलिए ऐसे मुद्दों पर जल्द से जल्द से आपसे समझ से फैसला लेने की जरुरत है।

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