सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अविवाहित महिलाओं को भी कानून के तहत गर्भपात का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अविवाहित महिला को गर्भपात कराने की मांग का अधिकार न देना। उनकी व्यक्तिगत आजादी का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी 25 वर्षीय एक अविवाहित महिला द्वारा 24 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग करने वाली याचिका के दौरान की। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच इस मामले में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए कि गर्भपात या चिकित्सकीय गर्भपात का अधिकार किसके पास है।

शीर्ष अदालत ने इन टिप्पणियों को गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (एमटीपी) अधिनियम की ओर इशारा करते हुए किया, जो एक भी महिला को 20 सप्ताह के बाद गर्भपात के लिए जाने की अनुमति नहीं देता है, इस प्रकार उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन करता है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि यह अधिनियम और संबंधित नियमों की व्याख्या करेगा कि क्या अविवाहित महिलाओं को चिकित्सकीय सलाह पर 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम और संबंधित नियमों की व्याख्या करेगी कि क्या अविवाहित महिलाओं को चिकित्सकीय सलाह पर 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में हुई प्रगति को देखते हुए (एमटीपी अधिनियम और नियम) कानून की व्याख्या होनी चाहिए।

अबॉर्शन के लिए डॉक्टरों की सलाह जरूरी

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ (Justics Chandrachud) ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने के लिए कानून में शामिल क्यों नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा अबॉर्शन (Abortion) के लिए डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी है। पीठ ने कहा कि विधायिका का क्या इरादा है? यहां सिर्फ पति शब्द को उपयोग नहीं बल्कि कानून में पार्टनर शब्द का उपयोग भी किया गया है।कानून सिर्फ मैरिड वूमन के बारे में चिंतित नहीं है बल्कि अविवाहित महिलाओं की भी चिंता करता है। अगर विवाहित महिलाओं को गर्भपात करने की अनुमति है तो अविवाहित महिलाओं को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता, कानून की नजर में एक महिला का जीवन मायने रखता है।  

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