
देहरादून। भारत-नेपाल सीमा विभाजक नदियों में लगे 1222 पिलर के गायब हो चुके है। जिसको लेकर आज दोनों देशों के अधिकारी दून में बैठक के दौरान इस पर मंथन कर रहे हैं। इस बैठक में नदी क्षेत्रों में बॉर्डर पर पिलर लगाने के तरीकों पर विचार किया जा रहा है। नदियों के बार बार बहाव बदलने से दोनों देशों के बीच सटीक सीमांकन में कर पाना बड़ी चुनौती है।
जीएमएस रोड स्थित सेफरॉन लीफ होटल में सोमवार से शुरू हुई तीन दिनी चौथी बाउंड्री वर्किंग ग्रुप मीटिंग के पहले दिन पिछली बैठक के निर्णयों की समीक्षा की गई। इसके बाद दोनों देशों के बीच नदी क्षेत्रों में सीमा निर्धारण के लिए बनने वाले बार्डर पिलरों पर चर्चा की गई। नेपाल चाहता है कि नदियों के बहाव के कारण गायब हुए ऐसे पिलरों को दोबारा लगाने की जिम्मेदारी भारत ले, चूंकि उसके पास बेहतर इंजीनियरिंग क्षमता हैं। नेपाली प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व वहां के सर्वे के डायरेक्टर जनरल गणेश प्रसाद भट्टा और भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भारत के महासर्वेक्षक मेजर जनरल वीपी श्रीवास्तव कर रहे हैं।
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विवाद में 12 नदियों से जुड़ा सीमा क्षेत्र: भारत व नेपाल के बीच में बिहार में घाघरा, कोसी, महानंदा (मेची), कंकाई, कमला, बागमती, पंचनद जैसी नदियां हैं तो यूपी में राप्ती, भाडा, करनाली, मोहाना और महाकाली नदी सीमा क्षेत्र से होकर बहती हैं। उत्तराखंड में एकमात्र महाकाली नदी पड़ती है। इन नदियों के बहाव क्षेत्र में कुल 1222 पिलर ऐसे हैं, जिन्हें दोबारा स्थापित करना जरूरी है। इन पिलर के न बनने से सीमा की स्थिति साफ नहीं है। भारत के चार राज्यों के 22 जिले इस दायरे में आते हैं। कालापानी और पंचेश्वर एजेंडे में नहीं: उत्तराखंड के नजरिए से कालापानी और पंचेश्वर बांध का मुद्दा एजेंडे में नहीं है। हालांकि दोनों राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे हैं। कालापानी के 65 वर्ग किमी क्षेत्र पर दोनों देशों की राय जुदा है। वहीं पंचेश्वर का मुद्दा भी संवेदनशील बना हुआ है।

