
लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) ने कहा कि एससी/एसटी कानून का विरोध करने वाले देश में संविधान की जगह ‘मनुस्मृति’ लाना चाहते हैं। इस कानून के खिलाफ भारत बंद का आह्वान करने वाली ताकतों के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा का हाथ है। यह दलित-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी मानसिकता का परिचायक है।

पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने गुरुवार को कहा कि बंद पूरी तरह फ्लॉप रहा। उन्होंने कहा कि देशव्यापी प्रतिवाद के दबाव में राजग की केंद्र सरकार भले ही एससी/एसटी कानून को उसके पुराने स्वरूप में पुनर्बहाली के लिए बाध्य हुई, लेकिन ब्राह्मणवाद के समर्थकों को यह बात गवारा नहीं हो रही है। वे देश में मनुस्मृति वाली व्यवस्था लाना चाहते हैं। आरएसएस इसकी प्रबल समर्थक है।
सुधाकर ने कहा कि हिटलर के नाजीवाद से प्रेरित आरएसएस-भाजपा-मोदी सरकार के लोग एससी/एसटी कानून तो क्या, डॉ. अंबेडकर लिखित पूरे संविधान को ही बदलने की बातें करते हैं, क्योंकि उनका मॉडल मनुस्मृति वाली वर्ण व्यवस्था और घृणा को और पुख्ता करना है।
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माले नेता ने कहा कि दलितों की सुरक्षा के लिए बना एससी/एसटी कानून उन्हें यूं ही थाली में परोसकर नहीं दिया गया है, बल्कि उन्होंने संघर्ष कर इसे हासिल किया है। लेकिन ब्राह्मणवादी ताकतें दलितों-आदिवासियों को दबाकर रखना चाहती हैं।
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सुधाकर ने मिर्जापुर की दलित महिला और सहारनपुर के भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर रावण और महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव मामले को गिनाते हुए कहा, “आज जब मोदी-योगी राज में जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतें सर चढ़कर बोल रही हैं, ऐसे में एससी/एसटी कानून की जरूरत पहले से भी ज्यादा हो गई है।”
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