जानिए कैसा रहा रयान स्कूल खोलने वाले अगस्टाइन एफ पिन्टो का सफ़र, हर साल हो रहा ब्रांच में इजाफा 

रयान स्कूलनई दिल्ली। उतार-चड़ाव हर इंसान के जीवन में आते हैं लेकिन सफलता भी उसी के कदम चूमती है जो इनसे घबराता नहीं बल्कि उनका डटकर सामना करता है। कुछ ऐसी ही कहानी है ‘पिंटोज’ फैमिली की। आपने पिंटोज फैमिली का नाम भले ही न सुना हो लेकिन रयान इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स (RIGI) का नाम ज़रूर सुना होगा।

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हाल ही में तूल पकड़ती रयान मर्डर केस की घटना के बाद स्कूल की छवि पर काफी गहरा असर पड़ा है जिसके चलते स्कूल की सालों से जमा की गयी इज्ज़त और लोकप्रियता धूमिल हो गयी है।

जिस नाम, इज्ज़त और शोहरत कमाने में संस्थापक अगस्टाइन एफ पिन्टो को बरसों लग गए उसे एक पल में गिरती देखना उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा।

भले ही भारत में इंग्लिश एजुकेशन के चलन ने पिछले 10-20 साल में ज्यादा जोर पकड़ा हो लेकिन मिडिल क्लास लोगों के बीच में उपज लेती इसकी ललक को ‘पिंटोज’ फैमिली ने ३०-35 साल पहले हैं समझ लिया था।

वह एक ऐसा समय था जब भारत विकास की ओर अपने कदम बढ़ा रहा था और दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां भारत में आकर व्यवसाय करने को तैयार थीं।

इसी दौरान अगस्टाइन एफ पिन्टो और उनकी पत्नी मैडम ग्रेस पिन्टो भारतीय मध्य वर्ग के लिए अंग्रेजीदां सपने बुन रहे थें।

ये दोनों उभरते हुए इंडिया में अंग्रेजी स्कूल की एक ऐसी श्रंखला खोलने का सपना बुन रहे थे, जिसमें अंग्रेजी भाषा को प्रोहित्साहित कर अव्वल दर्जे का प्रशिक्षण दिया जा सके। इसके लिए वे एक बेहतरीन वर्कफोर्स जुटाने में लगे हुए थे।

आज रयान इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स (RIGI) में 18 हजार फैकल्टी मेंबर्स यानी टीचर काम करते हैं, ये टीचर 2 लाख 70 हजार छात्रों को शिक्षा देते हैं, भारत में इस ग्रुप के 130 से ज्यादा स्कूल हैं जबकि खाड़ी देशों में भी इस ग्रुप में अपने पांच स्कूल खोल रखे हैं।

रयान स्कूल से हर साल 30 हजार बच्चे निकलते हैं। ये संस्थान हर साल अपने स्कूलों की फेहरिस्त में 4 से 5 नये विद्यालय जोड़ता है। इस ग्रुप ने अभी अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, थाइलैंड और मालदीव में एजुकेशन सेक्टर में कई समझौते किये हैं, जो दिखाता है कि शिक्षा क्षेत्र में पिंटोज परिवार अभी कई मुकाम और छूने को तैयार है।

आइए अब रयान ग्रुप के सफर पर एक नजर डालते हैं। रयान ग्रुप के संस्थापक अगस्टाइन एफ पिन्टो का जन्म कर्नाटक के मैंगलोर में हुआ था। पिन्टो ने चेन्नई के लोयला कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और काम की तलाश में मुंबई आए। इन्होंने 1970 में अपनी पहली नौकरी एक प्लास्टिक कंपनी में की लेकिन दो साल बाद कंपनी बंद हो गई और इनकी नौकरी चली गई। इसके बाद एक दोस्त की सिफारिश मुंबई के मलाड में इन्होंने टीचर की एक नौकरी की।

यही वो दौर था जब एफ पिन्टो ने अपने अंदर छिपे शिक्षक को पहचाना और अंग्रेजी के लिए इंडियन मिडिल क्लास की ललक को समझ पाए। पढ़ाई के दौरान ही अर्थशास्त्र के शिक्षक को गणित की शिक्षिका ग्रेस एलबुबर्क से प्रेम हुआ और 1974 में इन्होंने शादी कर ली। तब इन दोनों ने एक ही लक्ष्य रखा-भारत में लोगों को कम पैसे में अंग्रेजी मीडियम की अच्छी शिक्षा देना।

1976 में 10 हजार की लागत से इन्होंने बोरिवली में एक स्कूल खोला। इन दोनों का पहला ज्वाइंट वेंचर सफल नहीं रहा लेकिन दोनों के इरादे अभी भी नहीं बदले। इन दोनों ने 1983 में मुंबई के बोरिवली इस्ट में संत जेवियर्स हाई स्कूल नाम से फिर एक विद्यालय खोला। पत्नी ग्रेस एलबुबर्क की मदद से ये प्रोजेक्ट सफल रहा। इसके बाद इस जोड़े ने फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा। ग्रेस एलबुबर्क अब मैडम ग्रेस पिंटो के नाम से जानी जाती हैं और इस ग्रुप की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।

ये ग्रुप पूरा कॉरपोरेट स्टाइल में काम करता है। इस ग्रुप के उत्तराधिकारी हैं अगस्टाइन एफ पिन्टो और मैडम ग्रेस पिन्टो के बेटे रयान पिन्टो। रयान के नाम पर ही संस्थान का नाम है। लंदन के कास बिजनेस स्कूल से बिजनेस और आंत्रप्रन्योरशिप की डिग्री हासिल करने वाले रयान ग्रुप के चीफ एक्गीक्यूटिव ऑफिसर है और मुख्य रूप से संस्था के विदेश के कामों को देखते हैं। रयान की दो बहनें स्नेहल और सोनल पिंटो की एजुकेशन के ही क्षेत्र में हैं और फैमिली बिजनेस से ही जुड़ी हैं।

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