न सुप्रीम कोर्ट और न ही सीबीआई… अगर बाबा का ये प्लान होता सफल तो सब हो जाते फेल, कुछ न कर पाते…

सीबीआई की विशेष अदालतनई दिल्ली। संत राम रहीम को सीबीआई की विशेष अदालत ने रेप के दो मामलों में 10-10 साल की सजा सुनाने हुए जेल भेज दिया है। वहीं बाबा ने भी अपने गुनाह से बचने के लिए सारे हथकंडे अपनाये लेकिन उनकी दाल न गल सकी और अंत में उन्हें हार माननी ही पड़ी। बाबा को उनके किए की सजा तो मिल गई लेकिन इन सबके बीच सीबीआई के ही एक रिटायर्ड अधिकारी ने बड़ा खुलासा किया है।

अपने खुलासे में उन्होंने दावा किया है कि, ‘2002 के बाद से ही उन पर डिपार्टमेंट के बड़े अधिकारियों समेत कई लोगों द्वारा गुरमीत राम रहीम के खिलाफ केस को गिराने के लिए बहुत दबाव बनाया गया था।’ उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि बीतें 15 सालों के दौरान राम रहीम के खिलाफ बलात्कार का आरोप साबित करना डिपार्टमेंट के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।’

बता दें कि 67 वर्षीय मुलिंजा नारायणन अपनी 38 साल की सेवा पुलिस को देकर 2009 में सेवानिव्रत्त हुए थे। यह नहीं नारायणन सब-इंस्पेक्टर से प्रमोट होकर सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर पद तक पहुंचने वाले पहले अधिकारी हैं।

नारायणन डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के खिलाफ सीबीआई जांच टीम का नेतृत्व कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि बीतें 15 सालों के दौरान कई बार हार जीत का सामना करना पड़ा लेकिन अंत में बाबा को सज़ा मिलने से साफ़ हो गया है कि देश का कानून सर्वोपरि है इससे बड़ा कोई नहीं।

मुलिंजा के मुताबिक 12 दिसंबर 2002 को सीबीआई द्वारा केस रजिस्टर करने के तुरंत बाद उन्हें सीबीआई के एक सीनियर अधिकारी ने फरमान सुनाया था कि राम रहीम के खिलाफ केस को तुरंत बंद कर दें और उनके खिलाफ कोई एक्शन न लिया जाए।

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मालूम हो कि सितंबर 2002 में जब दिल्ली और हरियाणा उच्च न्यायलय द्वारा सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी गयी थी तो उस समय मुलिंजा नारायणन दिल्ली में बतौर डीआईजी (स्पेशल क्राइम) तैनात थे। नारायणन ने सीनियर अधिकारी की बात को नकारते हुए मामले को और गंभीरता से लिया और राम रहीम से जुड़े कई पहलुओं को खंगाला। उन्होंने बताया कि इतना सब होने के बावजूद भी लगातार नेताओं और अधिकारिओं द्वारा दबाव बनाया जा रहा था।

मुलिंजा के मुताबिक न्यायालय की निगरानी के चलते राम रहीम के खिलाफ जांच अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची और सीबीआई को सफलता मिली। मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए पीड़िता की पहली गवाही ही मजिस्ट्रेट के सामने कराई गई जिससे भविष्य में वह किसी दबाव के चलते अपने बयान से पलट न सके।

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उन्होंने 1999 में हुए इस घटना का ज़िक्र करते हुए कहा था कि, पीड़ित लड़की ने डेरा त्याग दिया था और शादी कर नया जीवन जीने की कवायद में लग गयी थी। ऐसे में पीड़िता को गवाही के लिए तैयार करना भी सीबीआई के लिए बड़ी चुनौती थी लेकिन आज का दिन व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए बेहद ख़ुशी का दिन है और हमारी मेहनत सफल हुई।

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