राइट टू प्राइवेसी पर जनता को मिली ‘सुप्रीम’ राहत के ये हैं मायने

right to privacy नई दिल्ली। मोदी सरकार को सुप्रीम झटका देते हुए देश की शीर्ष अदालत ने राइट टू प्राइवेसी पर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने मिलकर जनता को बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। अब लोगों के मन में सबसे पहला सवाल यह उठ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का लोगों पर क्या असर होगा।

हालांकि सरकार के लिए यह तगड़ा झटका है, क्योंकि सरकार ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार करार दिया है, लेकिन साथ ही कुछ बाध्यताएं भी हैं। आइए जानते हैं इस बारे में।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सरकार आपकी निजी जानकारी आपकी सहमति के बिना सार्वजनिक नहीं कर पाएगी।

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अगर सरकार कोई कानून बनाती है तो उसमें पैन और आधार जैसी जानकारी को देना जरूरी नहीं किया जा सकेगा।

इसके बावजूद अगर किसी कानून के तहत पैन और आधार जैसी चीज को जरूरी किया गया तो अब इस फैसले के आधार पर उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आधार कार्ड की जानकारी देना स्वेच्छिक होगा, न कि अनिवार्य।

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रेल और हवाई यात्रा जैसे कामों के लिए आधार या पैन कार्ड की जानकारी देना जरूरी नहीं किया जा सकता है।

इस फैसले के तहत किसी व्यक्ति से बेवजह आधार कार्ड को लेकर पूछताछ नहीं की जा सकेगी, लेकिन अगर कोई व्यक्ति कोई अपराध करता है तो उससे निजी से निजी जानकारी भी पूछी जा सकेगी।

हालांकि, जिन बाध्यताओं के साथ इसे मौलिक अधिकार करार दिया गया है, वह सरकार के पक्ष में जाते हैं।

 

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