
श्रावण का पूरा महीना भगवान शिव का होता है। इस महीने बहुत सारे तीज और त्योहार मनाए जातें हैं। प्रदोष व्रत भी इसी महीने में मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म में जैसे एकादशी को विष्णु से जोड़ा गया हैं वैसे ही प्रदोष को शिव जी से जोड़ा गया हैं। आप किसी भी कुल के हो आप यह दोनों व्रत रख सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों की त्रयोदशी के दिन किया जाता है।
इस महीनें प्रदोष व्रत 12 और 28 अगस्त को पड़ रहा है। 12 को सोम प्रदोष व्रत और 28 अगस्त को प्रदोष व्रत (कृष्ण) पड़ेगा। प्रदोष व्रत वैसे तो किसी भी दिन आए शुभ होता है लेकिन कुछ विशेष दिनों आने पर यह अधिक शुभ फलदायी हो जाता है। इनमें सोमवार को आने वाले सोम प्रदोष, मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष और शनिवार को आने वाले शनि प्रदोष का अधिक महत्व होता है और जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं।
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इस दिन नियम पूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और लंबी आयु प्राप्त होती है। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से होता है। अत: चंद्रमा के साथ सूर्य भी आपके जीवन में सक्रिय रहता है। यह सूर्य से संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान भी दिलाता है। अगर आपकी कुंडली में अपयश के योग हो तो यह प्रदोष करें। रवि प्रदोष रखने से सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। पुराणों का मानना है कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन: जीवन प्रदान किया अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकादशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
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प्रदोष व्रत की पूजा:
1-प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोषकाल में की जाती है।
2-सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले का समय प्रदोषकाल कहलाता है।
3-इसमें स्नान करके पवित्र श्वेत वस्त्र धारण करके पूजा स्थान में उत्तर-पूर्व की ओर मुंह करके बैठें।
4-अपने आसपास गंगाजल छिड़ककर स्थान को पवित्र कर लें।
5-संभव हो तो गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार करें।
6- इसमें पांच रंगों से रंगोली बनाएं। भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें।
7-अभिषेक करते समय शिव महिम्नस्तोत्र का पाठ करें या केवल ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
8-अभिषेक के बाद विधिवत पूजन कर मिठाई, फलों का नैवेद्य लगाएं।
9-यह व्रत 26 प्रदोष करने पर पूर्ण होता है। इसके बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
प्रदोष व्रत के लाभ:
1-भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।
2-जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है।
3-आर्थिक संकटों का समाधान करने के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।
4-प्रदोष व्रत के प्रभाव से हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं। बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है।
5-अविवाहित युवक-युवतियों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। इससे उन्हें योग्य वर-वधू की प्राप्ति होती है।
6-भगवान शिव ज्ञान और मोक्ष के दाता है। अध्यात्म की राह पर चलने की चाह रखने वालों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।