आज के दौर से ही नहीं, प्राचीन भारत में भी होता था परमाणु हथियारों का प्रयोग

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार पुराने समय में भी हथियार बनाए जाते थे। पुराने समय में बने हथियार आज के समय में बने हथियारों से काफी शक्तिशाली हुआ करते थे। उन हथियारों में मंत्रों की ऊर्जा भी विदद्मान होती थी। जिसके सामने आज के बने हथियारों की ताकत भी छोटी नजर आती है। प्राचीन काल में युद्ध के दौरान उपयोग किए जाने वाले हथियार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते थे। पहला अस्त्र और दूसरा शस्त्र।

हथियार

अस्त्र- जिसे मंत्र पढ़कर दूर से ही फेंका जाता है। इनके जरिए अग्नि, विद्युत,गैस या यांत्रिक उपायों से शत्रु पर वार किया जाता है।

ब्रह्मास्त्र

यह ब्रह्मदेव का अस्त्र माना जाता है। यह सबसे घातक व मारक अस्त्र था, जो दुश्मन को तबाह करके ही छोड़ता था। इसकी काट केवल दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही संभव थी। आज के दौर के हथियारों से तुलना की जाए तो ब्रह्मास्त्र की ताकत कई परमाणु बमों से भी कहीं ज्यादा थी। रामायण के मुताबिक मेघनाद ने हनुमानजी पर भी ब्रह्मास्त्र चलाया, लेकिन खुद रूद्र रूप हनुमान ने उसका सम्मान कर समर्पण कर दिया।

पर्जन्य अस्त्र

मंत्र शक्ति से सधे इस बाण से बिना मौसम भी बादल पैदा होते, भारी बारिश होती, बिजली कड़कती और हवाई बवंडर चलते थे। खासतौर पर यह आग्नेय बाण का तोड़ था।

आग्नेय अस्त्र

आपने सीरियस में देखा होगा कि बाण चलाने से आग बरसना शुरु हो जाती है। इस अस्त्र को आग्नेय अस्त्र के नाम से जाना जाता था। जो धमाके के साथ बरसना शुरु करता था। इसकी काट पर्जन्य बाण था।

पाशुपत अस्त्र

इस अस्त्र को शिव का अस्त्र माना जाता है। इस बाण में मंत्र से पैदा की गई शक्ति एक बार में ही पूरी दुनिया का नाश कर सकती थी। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान यह अस्त्र केवल अर्जुन के पास ही था।

नारायणास्त्र

नारायणास्त्र वैष्णव या विष्णु अस्त्र के नाम से भी जाना जाता है। यह पाशुपत की तरह ही भयंकर अस्त्र था। ऐसा माना जाता है कि इस अस्त्र की पूरी दुनिया में काट नहीं थी अगर यह एक बार छोड़ दिया जाता था तो इसे रोकना असंभव होता था। बस इससे समर्पण का एकत ही उपाय था कि शत्रु हथियार डालकर समर्पण करके पृथ्वी पर लेट जाए। नहीं तो यह अस्त्र एपने लक्ष्य से चूकता नहीं था।

हथियार

पन्नग अस्त्र

मंत्र बोलकर इस बाण के जरिए सांप पैदा किए जाते थे, जो तय लक्ष्य को जहर के प्रभाव से निश्चेत कर देते थे। इसकी काट गरुड़ अस्त्र से ही संभव थी। रामायण में भगवान राम व लक्ष्मण भी इसी के रूप नागपाश के प्रभाव से मूर्छित हुए थे और गरुड़ देव ने आकर इनसे मुक्ति दिलाई थी।

गरुड़ अस्त्र

इस अचूक बाण में मंत्रों के आवाहन से गरुड़ पैदा होते थे, जो खासतौर पर पन्नग अस्त्र या नाग पाश से पैदा सांपों को मार देते थे या उसमें जकडें व्यक्ति को मुक्त करते थे।

अस्त्र

बाणों को मंत्रों की शक्ति से तेज हवा और भयानक तूफान पैदा किया जाता था। जिससे चारें ओर अंधेरा छा जाता था।

शस्त्र-जिनसे दुश्मन से आमने- सामने युद्ध लड़ा जाता था।

गदा

छाती तक लंबाई व पतले हत्थे वाले इस शस्त्र का निचला भाग भारी होता था। इसका पूरा वजन तकरीबन 20 मन होता था। महाबली योद्धा हर हाथ में दो-दो गदा तक उठाकर युद्ध करते थे। इनमें बलराम, भीम व दुर्योधन भी खासतौर पर शामिल थे।

त्रिशूल

निचला हिस्सा पतला और ऊपरी हिस्से पर तीन शूल होते हैं।

वज्र

ऊपरी तीन हिस्से टेढ़े-मेढ़े, बीच का भाग पतला व हत्था भारी होता है।

असि

असि एक तलवार थी। यह धातु का बना टेढ़ मेढ़ा धारदार शस्त्र था।

 

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