नेपाल : सोशल मीडिया बैन हटा, 19 प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद सरकार का यू-टर्न

नेपाल सरकार ने सोमवार, 8 सितंबर को काठमांडू में भारी विरोध प्रदर्शनों औरसा के बाद 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा लिया। यह फैसला प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार का एक बड़ा यू-टर्न था, जो युवा-नेतृत्व वाले ‘जेन जेड रिवोल्यूशन’ के दबाव में लिया गया।

प्रदर्शनों में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक लोग घायल हुए, जिसमें 28 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। काठमांडू में संसद भवन पर हमले की कोशिश के बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू लगाया गया था, जो मंगलवार को भी जारी रहा।

विरोध प्रद और हिंसा

प्रदर्शन 8 सितंबर को सुबह 9 बजे काठमांडू के माइतीघर मंडला में शुरू हुए, जहां हजारों युवा, ज्यादातर स्कूल-कॉलेज यूनिफॉर्म में, एकत्र हुए। ‘हामी नेपाल’ संगठन द्वारा आयोजित इस आंदोलन का उद्देश्य न केवल सोशल मीडिया बैन, बल्कि भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आर्थिक असमान 202ता के खिलाफ था।

प्रदर्शनकारी न्यू बानेश्वर में संसद भवन की ओर बढ़े, जहां उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़े और परिसर में घुसने की कोशिश की। पुलिस ने आंसू गैस, पानी की बौछार, रबर बुलेट्स और लाइव गोलीबारी का सहारा लिया। नेशनल ट्रॉमा सेंटर के चीफ मिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. बदी रिजाल ने बताया कि सात लोगों की मौत सिर और छाती में गोली लगने से हुई।

प्रदर्शन काठमांडू के अलावा पोखरा, बुटवल, धरान, इटहारी और जनकपुर जैसे शहरों में भी फैल गए। इटहारी में दो और लोग मारे गए। काठमांडू जिला प्रशासन ने न्यू बानेश्वर, सिंगहादुर, नारायणहिटी और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में दोपहर 12:30 बजे से रात 10 बजे तक कर्फ्यू लगाया। मंगलवार को काठमांडू में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू किया गया, जो मध्यरात्रि तक ललितपुर में भी जारी रहा।

ने सोशल मीडिया बैन का कारण और हटाने का फैसला

4 सितंबर को सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यरूट्यूब, व्हाट्सएप, एक्स और लिंक्डइन जैसे 26 प्लेटफॉर्म्स को प्रतिबंधित किया था, क्योंकि वे ‘स बोशल मीडिया उपयोग विनियमन निर्देश 2080’ के तहतिशंजीकरण नहीं कर रहे थे। सरकार का कहना था कि ये कंपनियां नेपाल में पिमंजीकरण, कर भुगतान और स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करने में वि घफल रहीं। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 17 अगस्त के आदेश का पालन था, जिसमें बिना पंजीकरण के संचालन पर रोक लगाई गई थी।

हालांकि, आलोचकों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और सेंसरशिप का हथियार बताया। नेपाल के 30 मिलियन आबादी में 90% इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, और 13.5 मिलियन फेसबुक व 3.6 मिलियन इंस्टाग्राम यूजर्स हैं। बैन ने प्रवासी नेपाली परिवारों की संचार व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया, क्योंकि 7.5% आबादी (लगभग 22 लाख लोग) विदेश में रहते हैं।

मंगलवार सुबह संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रिथ्वी सुभ्बा गुरुंग ने घोषणा की कि सरकार ने बैन को हटा लिया है। उन्होंने कहा, “हमने सोशल मीडिया शटडाउन को वापस ले लिया है। वे अब काम कर रहे हैं।” रॉयटर्स ने पुष्टि की कि सभी ऐप्स मंगलवार सुबह उपलब्ध थे।ोज यहगारी फैसला मंत्रिमंडल की बैठक के बाद लिया गया, जिसमें गृह मंत्री रमेश लेखक ने हिंसा के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया।

के### भ्रष्टाचार और ‘नेपो बेबीज़’ का मुद्दा
प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया बैन को केवलिगर माना, न कि मुख्य कारण। युवाओं का गुस्सा भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आर्थिक अवसरों की कमी पर केंद्रित था। टिकटॉक, जो आ नेपाल में पंजीकृत है, पर वायरल वीडियो में नेताओं के बच्चों की विलासितापूर्ण जिंदगी और आम नागरिकों की गरीबी की तुलना ने आंदोलन को हवा दी। हैशटैग #NepoKid और #NepoBabies ट्रलेंड करने लगे, जो इंडोनेशिया के4रपति चुनाव के दौरान जोको विडोडो के परिवार के खिलाफ अभियान से प्रेरित थे।

प्रदर्शनकारी ‘यूथ्स अगेंस्ट करप्शन’ जैसे नारे लगकोंाते हुए सड़कों पर उतरे। 24 वर्षीय छात्र युजन रजभंडारी ने एएफपी को बताया, “सोशल मीडिया बैन ने हमें झकझोरा, लेकिन हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, जो नेपाल में संस्थागत हो चुका है।” 20 वर्षीय इमारॉक ने कहा, “हम सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ हैं। यह हमारी पीढ़ी का समय है।”

सरकार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री ओली ने हिंसा के लिए “विविध स्वार्थी समूहों की घुसपैठ” को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन उनके बयान ने प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़काया। उन्होंने मृतकों के परिवारों को मुआवजा और घायलों को मुफ्त इलाज का वादा किया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने “अनावश्यक या असमानुपातिक बल प्रयोग” की निंदा की और तत्काल जांच की मांग की। यूएन प्रवक्ता रविना शमदासनी ने कहा, “हमें प्रदर्शनकारियों की हत्या और चोटों से झटका लगा है।”

ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका की दूतावासों ने संयुक्त बयान जारी कर शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने बैन को प्रेस स्वतंत्रता के लिए खतरनाक बताया।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

बैन ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को झटका दिया। छोटे व्यवसाय, जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर निर्भर थे, बुरी तरह प्रभावित हुए। शंग्री-ला नेपाल ट्रेक के मैनेजिंग डायरेक्टर जिबन घिमिरे ने कहा, “सोशल मीडिया हमारा प्रमुख संचार साधन था। अब यह नाइटमेयर जैसी स्थिति है।” वीपीएन डाउनलोड में 400% की वृद्धि हुई, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह समाधान सीमित था।

प्रदर्शन नेपाल के 2008 के लोकतांत्रिक आंदोलन के बाद सबसे बड़े आंदोलन के रूप में देखे जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘जेन जेड रिवोल्यूशन’ भ्रष्टाचार और शासन की विफलता के खिलाफ युवा पीढ़ी की निराशा को दर्शाता है। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीवण शर्मा ने कहा, “यह आधुनिक नेपाल का सबसे हिंसक सामाजिक और राजनीतिक अशांति हो सकता है।”

आगे की राह

सोशल मीडिया बैन हटाने के बावजूद, प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को मृतकों के लिए शोक सभाओं का आह्वान किया। सरकार ने हिंसा की जांच के लिए समिति गठित करने का वादा किया, लेकिन युवाओं का विश्वास बहाल करना चुनौतीपूर्ण होगा। विपक्षी दलों, जैसे माओवादी सेंटर और राष्ट्रिय स्वतंत्र पार्टी, ने बैन और हिंसा की निंदा की। काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने इसे “युवाओं का स्वतःस्फूर्त आंदोलन” बताया।

यह आंदोलन नेपाल के लोकतांत्रिक ढांचे और ओली सरकार के भविष्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। यदि भ्रष्टाचार और शासन के मुद्दों का समाधान न हुआ, तो यह आंदोलन और तीव्र हो सकता है।

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