करण जौहर से है सिनेमाघर में राष्ट्रगान का बड़ा कनेक्शन

सिनेमाघरों में राष्ट्रगाननई दिल्लीः करीब एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने की अनिवर्यता को खत्म कर दिया है. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अब सिनेमाघर में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं होगा. इस मुद्दे में अहम रोल श्याम नारायण चौकसे का है, जिनकी याचिका की वजह से ये बड़ा मुद्दा बना. इस पूरी मुहिम के पीछे की दिलचस्‍प कहानी में करण जौहर और ‘कभी खुशी कभी गम’ का सबसे बड़ा किरदार है.

केंद्र सरकार ने बीते दिनों कहा था कि राष्ट्रगान को फिलहाल अनिवार्य ना बनाया जाए.

दरअसल, श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रगान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान का इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर जन गण मन को अंत तक गाया जाना चाहिए और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए.

याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि जन गण मन को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते. इसके अतिरिक्त राष्ट्रगान की धुन बदलकर किसी ओर तरीके से गाने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में राष्ट्रगान नियमों का उल्लंघन है और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है.

श्याम नारायण चौकसे सिनेमाहाल में राष्‍ट्रगान बजाने को अनिवार्य बनाने की मुहिम करीब 15 वर्ष पुरानी है. यह कहानी उस वक्‍त शुरू हुई जब करण जौहर की फिल्‍म कभी खुशी, कभी गम रिलीज हुई. उस वक्‍त चौकसे भी फिल्‍म को देखने गए थे. इस फिल्‍म में एक जगह राष्‍ट्रगान की धुन सुनाई देती है. चौकसे को उस वक्‍त काफी बुरा लगा जब इस दौरान कुछ लोग तो खड़े हो गए लेकिन कई दूसरे लोग उनका मजाक बनाने लगे थे. इसके बाद ही चौकसे के मन में इस मुहिम को चलाने की बात आई. लिहाजा वर्ष 2013 में उन्‍होंने जबलपुर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी.

राष्ट्रगान बजाने के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव कर दिया है. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अब सिनेमाघर में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं होगा.

इससे पहले नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना और खड़े होना अनिवार्य कर दिया था.

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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए थे कि वह एक दिसंबर, 2016 के अपने आदेश में सुधार कर सकता है. इसी आदेश के तहत देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के मकसद से सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शन से पहले जन गण मन बजाना और दर्शकों के लिये इसके सम्मान में खडा होना अनिवार्य किया गया था.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि, सरकार ने अंतर मंत्रालयी कमेटी बनाई है, जो छह महीने में अपने सुझाव देगी. इसके बाद सरकार तय करेगी कि कोई नोटिफिकेशन या सर्कुलर जारी किया जाए या नहीं. केंद्र ने कहा है कि तब तक 30 नवंबर, 2016 के राष्ट्रीय गान के अनिवार्य करने के आदेश से पहले की स्थिति बहाल हो.

गौरतलब है कि 23 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि सिनेमाघरों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, ये वो तय करे. इस संबंध में कोई भी सर्कुलर जारी किया जाए तो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित ना हों.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये भी देखना चाहिए कि सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा तय होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है. ये काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि लोग सिनेमाघर सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं. हम क्यों देशभक्ति को अपनी बांहों में रखें. ये सब मामले मनोरंजन के हैं. फ्लैग कोड काफी नहीं है, सरकार को एग्जीक्यूटिव आदेश जारी करने चाहिए. कोर्ट क्यों इसका बोझ उठाए?  लोग शॉर्ट्स पहनकर सिनेमा जाते हैं, क्या आप कह सकते हैं कि वो राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते. आप ये क्यों मानकर चलते हैं कि जो राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता, वो देशभक्त नहीं होते.

30 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने ‘जन गण मन’ से जुड़े एक अहम अंतरिम आदेश में कहा था कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले जन गण मन बजाना बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रगान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं होगा तथा राष्ट्रगान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब लोग राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का आदर करेंगे तो इससे लोगों के मन में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना जगेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये लोगों की फंडामेंटल ड्यूटी है कि वह संविधान का आदर करें, उसका पालन करें और संवैधानिक संस्थानों, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करें.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ये भी कहा था कि ये बात साफ है कि सभी नागरिकों का दायित्व है कि वह संविधान के आदर्श को मानें. अदालत ने कहा था कि समय की मांग है कि देश के नागरिक महसूस करें कि वह देश में रहते हैं और उनका कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगान का सम्मान करें जो कि संवैधानिक देशभक्ति और राष्ट्रीयता का प्रतीक है. व्यक्तिगत सोच के नाम पर इस मामले में आजादी नहीं दी जा सकती.

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