CJI और स्पीकर ने लिया फैसला, मुकुल रोहतगी बने लोकपाल चयन समिति के सदस्य
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि पूर्व महान्यायवादी मुकुल रोहतगी को लोकपाल समिति में एक विशिष्ट न्यायविद के रूप में नियुक्त किया गया है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को सरकार ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की समिति ने रोहतगी का चयन किया।
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न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि समिति के विशिष्ट व्यक्ति लोकपाल की नियुक्ति की तात्कालिकता की जरूरत के प्रति सचेत रहेंगे।
रोहतगी ने भारत के 14वें महान्यायवादी के तौर पर जून 2014 से जून 2017 तक सेवाएं दी थी।
पिछले 17 अप्रैल को केंद्र सरकार ने बताया था कि लोकपाल को चुनने के लिए 10 अप्रैल को मीटिंग हुई थी। इसके बाद जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसी उम्मीद है कि सरकार जल्द ही लोकपाल की नियुक्ति कर देगी।
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सरकार के भरोसा देने के बाद लोकपाल की नियुक्ति को लेकर कोर्ट ने आदेश जारी करने से इनकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने केंद्र पर आरोप लगाया था कि वो लोकपाल की नियुक्ति से अपना कदम पीछे खींच रही है।
इसके पहले केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि पिछले 1 मार्च को प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और लोकसभा स्पीकर की बैठक हुई। लेकिन बाकी सदस्य बैठक में मौजूद नहीं थे। इसलिए लोकपाल की नियुक्ति को लेकर अभी कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
आपको बता दें कि पिछले 1 मार्च को संपन्न बैठक में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकपाल चयन समिति की बैठक में इसलिए जाने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें स्पेशल इनवाइटी (विशेष आमंत्रित) के तौर पर आमंत्रित किया गया था। खड़गे ने कहा था कि ये बैठक केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से बुलाई गई है।
पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति को लटकाने पर कड़ा एतराज जताया था। कोर्ट ने कहा था कि लोकपाल विधेयक 2013 जो 2014 में अस्तित्व में आया उसके आधार पर नियुक्ति की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोकपाल के लिए चयन समिति में न्यायविद की नियुक्ति के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को वरीयता दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए नेता प्रतिपक्ष के बिना भी नियुक्ति की जा सकती है। नेता प्रतिपक्ष के बिना पर नियुक्ति में और देर नहीं किया जा सकता है। वर्तमान में प्रधानमंत्री के जरिए भी नियुक्ति की जा सकती है।
इसके साथ ही कोर्ट ने मामले में ढील देने के मामले में भी केंद्र को कहा था कि मामला में ढील नहीं दी जानी चाहिए।
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