जब नारद जी और पकौड़ीलाल में हो गई भिड़ंत, जानिए फिर क्या हुआ

नारदजी एक बार भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुंचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था।

नारदजी

वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- ‘आपको बाबूजी बुला रहे हैं।’ नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएंगे ही।

जैसे ही नारदजी दुकान पर पहुंचे, वहां बैठा हुआ लाला बोल- ‘बाबा राधेश्याम!’

नारदजी ने सोचा, शायद किसी राधेश्याम के चक्कर में मुझे बुला लिया है। अतः वे बोले- ‘भैया क्षमा करना, मेरा नाम राधेश्याम नहीं है, मैं तो नारद हूं।

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यह सुनकर लाला मुस्कुराकर बोला- ‘आप नारद हों या कोई और, मुझे इससे मतलब नहीं है, हां आप इस वीणा को मुझे बेच दो, मेरा लाडला वीणा चाहता है।’

यह सुनते ही नारदजी के पैरों तले जमीन खिसक गई, वह तो इस आशा से दुकान पर आए थे कि‍ कुछ आदर सत्‍कार होगा, किंतु यहाँ तो लेने के देने पड़ने लगे। वे बोले ‘ना भैया यह वीणा बि‍काऊ नहीं है। अपने लाड़ले सपूत को कोई दूसरी वीणा दि‍ला दो।’

इतना कहकर नारद जी जाने लगे तो दुकानदार कड़ककर बोला, ‘देखो बाबा मेरे बच्‍चे के मन में ये वीणा बस गई है आप चाहे जि‍तना पैसा ले लो, यह वीणा दे दो।’

नारद जी ने कहा, अरे क्‍या कहते हो भैया तुम्‍हारे लड़के के मन में तो ये आज बसी है मेरे मन में तो सदैव से यही बसी हुई है। मैं इसे नहीं दूंगा मुझे रुपए पैसे से कोई मतलब नहीं है।’

नारदजी के इस उत्तर से लाला जलभुन गया। उसने नारद जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- ‘शायद कहीं बाहर से आए हो बाबा?’

‘हां भैया मैं देवलोक से आया हूं।’ नारद जी ने वि‍नम्रता के साथ कहा।

तभी तो! वाराणसी में कब तक रहने का वि‍चार है?’ लाला ने घमंड के साथ पूछा।

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‘अब आ ही गया हूं तो भगवान शि‍व की नगरी में 5-10 दि‍न घूमूंगा फि‍रूंगा।’ नारद जी ने जवाब दि‍या।

‘तो कान खोलकर सुन लो बाबा! आप इस वीणा को लेकर वाराणसी से वापस नहीं जा सकते। मुझे सेठ पकौड़ीलाल कहते हैं। मेरी शक्ति‍ और सामर्थ्‍य के बारे में जानना हो तो कि‍सी भी बनारसी से पूछ लेना।’

सेठ की बेसि‍र पैर की बाते सुनकर नारद जी को भी मजाक सूझा। वे बोले, ‘हां तुम्‍हारी शक्ति‍ का तो अंदाजा तुम्‍हारी मोटी तोंद से ही लग रहा है लेकि‍न शायद तुम्‍हारी बुद्धि‍ तुम्‍हारी तोंद से भी मोटी है।’

नारद जी के मुंह से ऐसा सुनकर से सेठ आग बबूला हो गया जैसे ही वह नारद जी पर झपटा, वे अंतर्ध्‍यान हो गए। लाला का पैर फि‍सला और वो धम्‍म से नीचे गि‍र पड़ा।

शिक्षा: लोगों से हमेशा प्रेम-पूर्वक व्यवहार करें। क्या पता किस रूप में भगवान आपकी परीक्षा ले रहा हो। हद से ज्यादा उग्रता अहंकार को जन्म देती है और यही अहंकार नर्क के दरवाजे खोल देता है।

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