बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए मोदी सरकार करेगी कानून में ये बड़ा बदलाव

नई दिल्ली. एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था। आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्‍नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी कर्तव्यहीन हो गई है। जिसका खामियाजा बुजुर्गों को भुगतना पड़ता है। आज के दौर में हम बुजुर्गों को सहारा देना भूल जाते हैं जबकि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें हमारी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मगर अब केन्द्र सरकार ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए बने कानून में बदलाव करने की ओर कदम बढ़ाया है।

मां-बाप की देखभाल

दरअसल सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मंत्रालय ने अपनी सिफारिश में बच्चों की परिभाषा बदलने की बात की है।

सिफारिश के मुताबिक बच्चों की परिभाषा में दत्तक या सौतेले बच्चों, दामाद और बहुओं, पोते – पोतियों, नाती-नातिनों और ऐसे नाबालिगों को भी शामिल करने की सिफारिश की गयी है जिनका प्रतिनिधित्व कानूनी अभिभावक मौजूदा कानून में सिर्फ सगे बच्चे और पोते-पोतियां को ही शामिल किया है।

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अगर मंत्रालय की सिफारिश को माना जाता है तो सौतेले बच्चों, दामाद और बहुओं, पोते – पोतियों, नाती-नातिनों आदि को भी बच्चा माना जाएगा और ये अगर माता-पिता या बुजुर्गों के साथ खराब व्यवहार करते हैं तो उन्हें छह महीने की सजा हो सकती है।

बता दें कि नया कानून साल 2007 के कानून की जगह लेगा। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और कल्याण कानून, 2018 का मसौदा तैयार किया जाएगा।

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नए कानून में मासिक देख-भाल भत्ता की 10,000 रुपये की अधिकतम सीमा को भी समाप्त कर दिया गया है। नए कानून के मसौदे के अनुसार अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता की देखभाल से इनकार करता है तो वो कानून का सहारा ले सकते हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले माता-पिता के साथ से बुरा बर्ताव करने पर 3 महीने की सजा का प्रावधान है। साथ ही यदि बच्चे मां-बाप या अभिभावक को देखभाल भत्ता नहीं देते तो वह ट्रिब्यूनल में इसकी शिकायत कर सकते हैं।

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