2005 से अब तक भारत ने 10 लाख बच्चों को मौत से बचाया : शोध

पांच साल से कम उम्रटोरंटो। भारत में निमोनिया, दस्त, टेटनस और खसरा जैसे रोगों से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी के कारण 2005 के बाद से पांच साल से कम उम्र के लगभग दस लाख बच्चों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया गया है। भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई है।

2005 में यह गिरावट शुरू हुई और 2010-2015 के बीच शहरी इलाकों और अपेक्षाकृत धनी राज्यों में सबसे तेज रही।

टोरंटो में सेंट माइकल हॉस्पिटल के सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के प्रमुख शोधकर्ता प्रभात झा ने कहा कि, अगर कुछ राज्यों की तरह राष्ट्रीय स्तर पर बाल स्वास्थ्य के स्तर में प्रगति हुई होती, तो जितने बच्चों को बचाया गया उसकी तुलना में लगभग तीन गुना अधिक बच्चों को बचाया जा सकता था।

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जर्नल लैन्सेट में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि नवजात शिशुओं (1 महीने से भी कम उम्र के शिशुओं) की मृत्यु दर 3.3 फीसदी और एक महीने से 59 महीने के आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर में 5.4 फीसदी की सालाना गिरावट आई है।

यह बड़े पैमाने पर टेटनस और खसरा से होने वाली नवजात मृत्यु दर में कमी को दर्शाता है जिसमें कम से कम 90 प्रतिशत तक की गिरावट आई। नवजात संक्रमण और जन्म के दौरान चोट लगने से होने वाली मौतों में 66 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।

निमोनिया और दस्त के कारण एक से लेकर 59 महीने तक के बच्चों की मृत्यु दर में भी 60 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।

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नवजात शिशुओं की मृत्यु दर 2000 में प्रति 1,000 पर 45 से घटकर 2015 में 27 हो गई। वहीं एक से 59 महीने तक के बच्चों की मृत्यु दर 45.2 से गिरकर 19.6 हो गई।

शोधकर्ताओं ने कहा कि महिला साक्षरता की बेहतर दर और महिलाओं को अस्पताल में बच्चे को जन्म देने के लिए प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं और भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च में बढ़ोतरी के कारण सभी मृत्यु दरों में गिरावट आई है।

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