जब मुलायम के ‘अमर’ की पीएम मोदी ने सुनाई ‘गाथा’

अमित विक्रम शुक्ला

जब सियासत के लिए दिल में जगह पनप जाए। और आपके अन्दर का छुपा हुआ नेता मन ही मन भाषण देने लगे, तो समझ लीजिए मौजूदा समय आपके अनुकूल होने जा रहा है। जिसकी संभावनाएं प्रबल हो चुकी हैं।

लेकिन… हम ये सब काहे लिए बोले जा रहे हैं। आखिर काहे हारमोनियम रुपी की-बोर्ड के बटन को दबाये जा रहे हैं। तो वो इसलिए। क्योंकि आज हम जिनके बारे में चर्चा करेंगे। उनको समझने के लिए या उनको परिभाषित करने के लिए हमें मनोरंजन की चकाचौंध में सराबोर होना पड़ेगा। उसके बाद सियासी अखाड़े में कबड्डी-कबड्डी नहीं बल्कि नेता जी… नेता जी… भी कहना पड़ेगा। और इन सबके पहले वो ‘अमर’ तो हैं ही।

अब सवाल ये है कि आखिर शुरू कहाँ से करें? क्योंकि ख़त्म तो ये होगा नहीं!

वैसे 1956 में बॉलीवुड में कुछ बेहद सफल फ़िल्में आयीं। लेकिन उसी साल गणतंत्र दिवस के अगले दिन एक इंसान पैदा हुआ था। उसने इन सारी फिल्मों को अपने जीवन में उतार दिया। या यूं कहें कि इन सारी फिल्मों ने उस के जीवन चरित का पूर्वानुमान लगाया था। इसे संयोग कहें या उस इंसान की जिद कि जिसने अपने जीवन को एक फ़िल्मी अंदाज़ में जिया है।

दरअसल, आज हम बात करेंगे एक ऐसे आदमी की कहानी जिसके बारे में आप जो चाहे सोच सकते हैं और आप गलत नहीं होंगे। आप उसे गरियाते-गरियाते हंस पड़ेंगे और उसकी दिल्लगी के किस्से सुनाने लगेंगे।

उसकी कहानी शुरू करते समय आंखों के सामने वो दृश्य कौंध जाता है। जब वो हेलीकॉप्टर से खाली मैदान में उतरता है और लुढ़क कर गिर जाता है। उसकी टोपी भी उसका साथ छोड़ देती है। लेकिन एक खूबसूरत औरत उसके पीछे खड़ी रहती है और उसे अपने पैरों पर खड़ा होते देखती है।

हम बात कर रहे हैं। अमर सिंह की। जिनका जन्म 27 जनवरी 1956 में आजमगढ़ में हुआ था। और आजम खान से उनकी कभी नहीं बनीं।

अमर सिंह

अमर सिंह का बचपन बड़ा बाज़ार कलकत्ता में गुजरा। वहीँ परिवार हार्डवेयर का बिज़नेस करता था। पढाई ज़ेवियर कॉलेज कलकत्ता में होती है। और पढ़ाई पूरी करता है। वो बंगाली बन जाता है। उसे बंगाली अच्छी आती है।

लेकिन अचानक पता चलता है कि वो बेंगलुरु में बिज़नेस चला रहा है। आज भी वो ईडीसीएल कंपनी का मालिक है। जो इंफ्रास्ट्रक्चर और पॉवर सेक्टर में है। और भी बिज़नेस हैं। पर बंदे के बिज़नेस के बारे में ज्यादा बात करना ठीक नहीं है। सब ठीक ठाक चल रहा है। कुछ होगा तो जरुर बताया जायेगा।

अमर सिंह

1985 में जातिगत संबंधों के आधार पर अमर सिंह को मौका मिलता है। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के सत्कार करने का। मुख्यमंत्री जी अमर सिंह से प्रभावित होकर लखनऊ शिफ्ट होने का न्योता देते हैं।

अमर सिंह

बात तो थी लौंडे में। अमर सिंह ने मौके के जिंदादिली को समझा और दादी मां के साथ आ गए। इसके बाद उनके सम्बन्ध बॉलीवुड, कॉर्पोरेट, राजनीति के लोगों से बढ़ते चले गए।

मुलायम ‘अमर’ रहें!

1996 में मुलायम सिंह से उनकी एक यूं ही वाली मुलाक़ात हो गयी। मुलायम जी की अपनी पार्टी चार पांच साल पुरानी थी और ज्यादातर ग्रामीण परिवेश से जुडी थी। दिल्ली की सत्ता में मुलायम डिफेन्स मिनिस्टर के रूप में कदम रख चुके थे। पर 40 के अमर सिंह की युवा सोच और कनेक्शंस उनको भा गए। उन्होंने अमर सिंह को अपनी गिरफ्त में ले लिया।

अमर सिंह

वो समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता बन गए। राज बब्बर, आजम खान, रामगोपाल यादव, बेनी प्रसाद वर्मा सबको पछाड़कर और दु:खी कर अमर सिंह मुलायम के चहेते बन गए।

अमर सिंह

फिर क्या, समाजवादी पार्टी ग्रामीण परिवेश से निकल कर बॉलीवुड, कॉर्पोरेट और न जाने किस-किस से ताल्लुकात बढ़ाती चली गयी। अमर सिंह सुपर स्टार बन गए। और मुलायम सर रजनीकांत।

अमर सिंह

ध्यान में रहे 45 की उम्र तक अमर सिंह अमिताभ बच्चन, केतन पारीख, सहारा श्री, शोभना भरतिया, चंद्रशेखर, अम्बानी, माधवराव सिंधिया, बिड़ला सबके जिगरी यार बन चुके थे।

बोनी कपूर

अमिताभ बच्चन के जुहू वाले घर में उनके लिए एक कमरा होता था और श्री बच्चन के गाड़ी में वो घूमते थे। यही वो दिन थे जब अमिताभ बच्चन एक बार फिर से केबीसी के बाद सिनेमा की दुनिया का फिर से ध्रुव तारा बन चुके थे। कहा जाता है कि उस वक़्त अमर सिंह ही इस तारे के सप्तर्षि थे। आम जनता के लिए भाई भाई थे दोनों।

इस बार किसी को नीच नहीं बोला, तारीफ की मणिशंकर साहब ने!

मणिशंकर अय्यर ने कहा था, ‘एक बार- इस आदमी को देखो! न तो ये अमिताभ है न ऋतिक। न ही इसके पास ऑक्सफ़ोर्ड की डिग्री है। पर इसका कॉन्फिडेंस देखो। कहां से लाता है ये कॉन्फिडेंस?’

अमर सिंह

2008 में जब उन्होंने सरकार बचाई। उसी वक्त बीजेपी के तीन सांसद अशोक अर्गल, महावीर भगोरा, फग्गन सिंह कुलस्ते ने नोट लहराते हुए संसद में अपनी फोटो खिंचवाई थी। सांसदों की खरीद फरोख्त का आरोप अमर सिंह पर ही लगा था। बाद में एक टेप और सामने आया, जिसमें वो एक जज को सेट करने की बात कर रहे थे।

मुलायम यादव

मतलब डेमोक्रेसी को उन्होंने कहीं का नहीं छोड़ा। अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। तिहाड़ में भी कुछ समय बिताना पड़ा था। गौरतलब है कि अमर सिंह राज्यसभा के सांसद रहते हुए संसद की कई सारी कमिटियों जैसे विजिलेंस, मनी लॉन्ड्रिंग की रोक वगैरह पर काम कर चुके थे। भैया पूरे कंटास आदमी हैं। कोई मोरल नहीं!

फिर एक ऐसा वाकया हुआ जिसने किसी को पानी-पानी कर दिया, तो किसी को चटकारे ले लेकर बोलने का मौका दे दिया। एक कथित टेप आया, जिसमें बॉलीवुड की अभिनेत्री बिपाशा बासु और अमर सिंह की बाते थीं। जिसपर लेखक ज्यादा प्रकाश नहीं डाल सकता है।

बासु

अमर सिंह ने हमेशा इस बात को नकारा। पर कहीं-कहीं ये भी कहते पाए गए कि मेरी वाली आवाज मेरी है पर बिपाशा वाली किसी और की है।

वैसे भी मैं अपने दोस्तों से ऐसी बातें करता हूं। कौन नहीं करता यार। पर दामन में लगा दाग ऐसे नहीं छूटता। वो भी हमारी सोसाइटी में। हालांकि ये गलत था। जिसने भी टेप किया गलत किया। दूसरे से जल भुन के ऐसी हरकत क्यों करनी यार? तुम भी करो। सबका अधिकार है।

पर एक हरकत इन्होंने अपनी तरफ से भी की। बटाला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए इंस्पेक्टर मोहन शर्मा के परिवार को इन्होंने दस लाख का चेक दिया, जोकि बाउंस कर गया। बाद में इन्होंने मोहन शर्मा को ही कुसूरवार ठहराया और मामले की जांच की मांग की।

फिर एक वक़्त आया। बुरा वक़्त। अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिया गया। जातिगत राजनीति, पार्टी के खिलाफ काम, समाजवादी सोच के खिलाफ काम। और भी कई सारे आरोप थे।

उनके साथ जया प्रदा को भी बाहर किया गया। जया बच्चन ने अपना निर्णय लिया और समाजवादी पार्टी में बनी रहीं। यहीं से बच्चन परिवार के साथ उनकी खटास शुरू गयी।

जया प्रदा

सच तो ये है कि उनकी खटास जीवन के हर क्षेत्र में आ चुकी थी। यह वही जया प्रदा उनके साथ थीं, जिन्होंने इनको हेलीकॉप्टर से गिरते और उठते देखा था इनके जीवन की तरह।

सारे के सारे सितारे अमर सिंह की जिंदगी से बाहर हो गए और इनके खुद के सितारे गर्दिश में आ गए। बच्चन साहब इनके बड़े भाई से अमित जी हो गए और बच्चन साहब ने अमर सिंह के बारे में हर सवाल पर मौन साध लिया।

हालांकि शाहरुख़ खान ने जरूर एक बार कहा था कि अमर सिंह की आंखों में मुझे शैतान नज़र आ रहा है। ये भी कोई अच्छी बात नहीं थी।

शाहरुख़

इनकी दुश्मनी एक और भाई के साथ थी। वो थे आजम खान साहब। बाद में ये और बढ़ गयी। जया प्रदा, जिनको आजम खान अपनी बहन बताते थे, अमर सिंह के साथ चली गयीं।

हार नहीं मानेगा!

फिर आजम खान के इलाके रामपुर में जया प्रदा की खराब-खराब तस्वीरें लगाई गयीं और वाहियात बातें लिखी गयीं। हालांकि अमर सिंह और जया प्रदा के रिश्ते बेहतर होते गए हैं वक़्त के साथ।

अमर सिंह ने 2011 में राष्ट्रीय लोक मंच नाम से पार्टी बनायी और हर चुनाव हारे। फिर उन्होंने एक तरह से संन्यास ले लिया। कहते थे ऐसा। सच ये था कि उनको दे दिया गया था। पर खिलाड़ी हार मान ले तो खिलाड़ी कैसा!

अमर सिंह दांव चलते रहे। चलते रहे। अमिताभ बच्चन का नाम प्रेसिडेंट के लिए मीडिया में प्रस्तावित किया। साथ ही सिलसिला की कहानी को सच्ची भी बताते थे।

पनामा वाले मामले में कुछ-कुछ बोलते रहे जिसको किसी ने सुना नहीं। फिर एक आईआरएस महिला ऑफिसर से माफी भी मांगी, जिसको इन्होंने अमिताभ की हेल्प के लिए परेशान किया था और उसने रिजाइन कर दिया था। कभी इन्होंने नरेन्द्र मोदी को बहुत ही अच्छा आदमी बताया। कभी सोनिया गांधी को।

फिर मुलायम को बताने लगे। आजम खान से खाने पर भी मिलने गए। शिवपाल यादव से काफी कुछ संबंध सुधार कर लिया। पता नहीं कैसे? कैसे कर लिया यार? पाकिस्तान भेजा जाए क्या इनको दूत बनाकर?

अखिलेश यादव

लेकिन भैया अमर सिंह जब तक इस धरती पर रहेंगे। उनकी मधुशाला निशिदिन चलती रहेगी। राजनीतिज्ञ, सितारे, व्यापारी, पत्रकार और जनता इस मधुशाला में आते रहेंगे। वैसे अमर सिंह बॉलीवुड में शैलेन्द्र पाण्डेय की फिल्म जेडी में एक पॉलिटिशियन का किरदार निभा चुके हैं। ये फिल्म 5 अगस्त 2016 को रिलीज़ हुई थी।

अमर सिंह

वहीँ आजकल अमर सिंह और पीएम मोदी की नजदीकियों के बारे ज़ोरदार बयार बह चुकी है। और खुद मोदी जी भी मंच से उनका नाम लेकर अमर सिंह के चेहरे की लालिमा और बढ़ा देते हैं। और मोदी साहब ये भी बता देते हैं कि अमर सिंह के पास सबका कच्चा चिट्ठा है। यक़ीनन अमर सिंह की मधुशाला के अच्छे दिन आ गए हैं, लगता तो ऐसा ही है।

साफ़ है नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के चहेते रहे अमर सिंह अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैन बन गए हैं।

अमर सिंह

उन्हें मोदी की नीतियां भी पंसद आ रही हैं। बीजेपी की सदस्यता लिए बिना भी वो मोदी के लिए काम करना चाहते हैं।

अमर सिंह

बस… कहानी ख़तम! 

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