प्रेरक-प्रसंग : बच्चे की सीख

प्रेरक-प्रसंगबचपन से ही एक महिला को अध्यापिका बनने तथा बच्चों को मारने का बड़ा शौक था। जब वह पाँच साल की थी तब छोटे-छोटे बच्चों का स्कूल लगा कर बैठ जाती। उन्हें लिखाती पढ़ाती और जब उन्हें कुछ न आता तो खूब मारती।

बड़ी होकर वह अध्यापिका बन गई। स्कूल जाने लगी। वह बहुत प्रसन्न थी कि अब मेरी पढ़ाने और बच्चों को मारने की इच्छा पूरी हो जाएगी। जल्दी ही स्कूल में वह मारने वाली अध्यापिका के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

एक दिन श्रेणी में एक नया बच्चा आया। उसने बच्चों को सुलेख लिखने के लिए दिया था। बच्चे लिख रहे थे। अचानक ही उसका ध्यान एक बच्चे पर गया जो उल्टे हाथ से बड़ा ही गंदा हस्तलेख लिख रहा था। उसने आव देखा न ताव, झट उसके एक चाँटा रसीद कर दिया। और कहा, “उल्टे हाथ से लिखना तुम्हें किसने सिखाया है और उस पर इतनी गंदी लिखाई!”

इससे पहले कि बच्चा कुछ जवाब दे, उसका ध्यान बच्चे के सीधे हाथ की ओर गया, जिसे देखकर वह वहीं खड़ी की खड़ी रह गयी क्योंकि उस बच्चे का दायाँ हाथ था ही नहीं। किसी दुर्घटना में कट गया था।

यह देख कर उसकी आँखों में बरबस ही आँसू आ गए। वह उस बच्चे के सामने अपना मुँह न उठा सकी। अपनी इस गलती पर उसने सारी कक्षा के सामने उस बच्चे से माफ़ी माँगी और यह प्रतिज्ञा की कि कभी भी बच्चों को नहीं मारूँगी। इस घटना ने उसे ऐसा सबक सिखाया कि उसका सारा जीवन ही बदल गया।

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