Indira Ekadashi 2018: इस एकादशी व्रत रखने पर मिलता है पितरों को मोक्ष, जानिए कथा और पूजा की विधि
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अर्थात कि पितृपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस कारण से इस एकादशी का महत्व भी काफी बढ़ा गया है। इस साल यह एकादशी 5 अक्टूबर यानि कि आज मनाई जा रही है। इस एकादशी के बारे में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई पितर भूलवश अपने पाप के कर्मों के कारण यमराज के दंड का भागी रहता है तो उसके परिजन के द्वारा इस एकादशी का व्रत करने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी व्रत विधि
सतयुग की बात है। भगवान कृष्ण ने इस व्रत का महत्व महाराज युद्धिष्ठर को बताया और समझाया था। इंद्रसेन नाम का एक राजा था जिसका महिष्मति राज्य पर शासन था। राजा के राज्य में सभी प्रजा सुखी थी और राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार राजा के दरबार में देवर्षि नारद पहुंचे तब राजा ने उनका स्वागत सत्कार किया और आने का कारण पूछा। तब देवर्षि नारद ने बताया कि मैं यम से मिलने यमलोक गया, वहां मैंने तुम्हारे पिता को देखा। वहां वह अपने पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं यातनाएं झेल रहे हैं। बस तभी से ही इस व्रत को रखने की प्रथा की शुरुआईत हो गई। यह व्रत एकादशी के एक दिन पहले से शुरू हो जाता है। यानि की दशमी को शुरू हो जाता है। इस व्रत में पूरा दिन कुछ खाया नहीं जाता है। यहां तक कि रात में भी भोजन नहीं किया जाता है।
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पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद अपने पितरों का श्राद्ध करें और दिन में केवल एक बार ही भोजन करें। इसके बाद ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें और उन्हें दक्षिणा दें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करे। एकादशी के व्रत का पारण एकादशी के अगले दिन सुबह करें।
पूजा मूहूर्त
एकादशी प्रारम्भ: 4 अक्टूबर की रात को 9 बजकर 49 मिनट
एकादशी समाप्त: 5 अक्टूबर की शाम को 7 बजकर 18 मिनट
पारण का समय: 6 अक्टूबर सुबह 6:20 से 8:39 मिनट