क्या है हवाला? जिसके नाम से छूट जाते हैं नेताओं के पसीने

हवालानई दिल्ली। भारतीय राजनीति में ऐसे नेता बहुत कम ही हुए हैं, जिनपर भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोप ना लगे हों। इसे सियासी मतभेद कहें या आपसी रंजिश। लेकिन इसके फेर में ज्यादातर नेता आ ही जाते हैं। ऐसा ही कुछ दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ आदमी पार्टी के संस्थापक और सूबे के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ हो रहा है। उनके ही पूर्व साथी कपिल मिश्र लगातार उनपर इस तरह के आरोप मढ़ रहे हैं। उन्होंने केजरीवाल पर हवाला कंपनियों से पैसा लेने का आरोप लगाया है।

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हवाला शब्द को सुना और पढ़ा तो सभी ने है लेकिन इसकी ऊपज के बारे में शायद ही किसी को पता होगा। तो आइये आज हम इस शब्द के इतिहास को टटोलते हैं और जानते हैं कि आखिर इसकी शुरुआत कहां से हुई।

हवाला शब्द की उपज

हवाला शब्द का जिक्र हमें आठवीं शताब्दी में मिलता है। यह शब्द अरब देशों से चल कर यहां तक पहुंचा है। भूमध्य सागर से दक्षिण चीन सागर तक साढ़े छह हजार किलोमीटर लंबा व्यापार मार्ग था। जोकि एशिया, अफ्रीका और यूरोप को आपस में जोड़ता था।

बता दें इस रास्ते पर लूटपाट की घटनाएँ आम थी इसलिए इससे बचने के लिए व्यापरियों ने एक उपाय खोज निकाला।

व्यापारियों ने तय किया कि वो आपस में एक ख़ास किस्म का टोकन रखेंगे। जब अरब से कोई आदमी चीन की तरफ जाएगा तो अरब का व्यापारी उसे ये टोकन देगा और एक खास व्यापारी का पता भी।

वहीँ चीन का व्यापारी उस टोकन को रख लेगा और उसे तय रकम का भुगतान कर देगा।

बता दें इस टोकन को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नाम दिया गया।

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भारत में इसे हुंडी के नाम से जाना जाता है। जबकि सोमालिया में यह जवाला हो जाता है। वहीँ अरब में भी लोग इसे हवाला कहते हैं। इसे हम उस समय की बैंकिंग के रूप में समझ सकते हैं।

उस समय में किसी व्यापारी की साख को तय करने के लिए उसकी हुंडी कहां तक चलती है इस बात से अंदाजा लगाया जाता था।

बैंक की स्थापना

समय के साथ साथ व्यापारिक जरूरतें बढ़ने लगी, जिसके कारण 1695 में बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की शुरुआत हुई। इसे हम आधुनिक बैंकिंग का केंद्र बिंदु मान सकते हैं। लेकिन इसके बाद भी हवाला कभी बंद नहीं हुआ।

आधुनिक बैंकिंग ने लेन-देन के रिकॉर्ड को आसान बनाने के साथ साथ दस्तावेज़ के प्रयोग ने सरकार के लिए कर चोरी करने वालों तक पहुंचना भी आसान बना दिया। इन सबके बावजूद गलत तरीके से कमाए गए पैसे और कर-चोरी करने वालों ने हवाला व्यवस्था का सहारा लिया है।

बता दें आज के समय में ये गैरकानूनी तरीके से पैसा इधर से उधर करने का सबसे बड़ा जरिया बन गया है।

राजनीति से सम्बन्ध

भारतीय राजनीति में सबसे पहले इसकी आवाज़ 1993 में सुनने को मिली। जब जनसत्ता में जून के महीने में नब्बे के दशक (1993) में एक स्टोरी छपी लेकिन यह मामला उस मौजूदा समय से दो साल पुराना था।

सन 1991 में कश्मीरी आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के संदेह में दिल्ली पुलिस ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शहाबुद्दीन गोरी को जामा मस्जिद इलाके से गिरफ्तार किया। मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। CBI की जाँच प्रक्रिया शुरू होने के बाद ये मामला परत दर परत खुलता चला गया।

गोरी के कहे मुताबिक सीबीआई ने साकेत में रहने वाले जैन बंधुओं के घर पर छापा मारा, जिसमें सीबीआई ने चार जैन बंधुओं में से एक सुरेंद्र कुमार जैन की विस्फोटक डायरी भी बरामद की।

डायरी के पन्नों से आया भूचाल

इस डायरी में बड़े अफसरों और नेताओं सहित 115 लोगों के नाम दर्ज थे, जिन्हें 64 करोड़ रुपए अदा किए गए की बात लिखी थी। इनमें लालकृष्ण आडवाणी, विद्याचरण शुक्ल,  मदनलाल खुराना, बलराम जाखड़, नारायणदत्त तिवारी जैसे बड़े नाम भी शामिल थे। इस खुलासे से भारतीय लोकतंत्र में भूचाल आना स्वाभाविक माना जा रहा था और हुआ भी कुछ वैसा ही।

बता दें तभी से राजनीति में ‘हवाला’ को विस्फोटक शब्द का नाम मिल गया।

लेकिन कुछ समय बाद मामले में कानूनी कार्रवाई के दौरान सीबीआई की भूमिका संदिग्ध साबित हुई थी।

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