
दुनिया भर में नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर उत्साह चरम पर है, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम के इर्द-गिर्द घूमती चर्चाओं के बीच। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में कई वैश्विक संघर्षों को समाप्त करने का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार वे दौड़ से बाहर हैं।
नॉर्वे के ओस्लो में नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी आज दोपहर 11:00 बजे (सीईएसटी, भारतीय समयानुसार शाम 2:30 बजे) विजेता का नाम घोषित करेगी। इस साल 338 नामांकन प्राप्त हुए हैं, जिनमें 244 व्यक्ति और 94 संगठन शामिल हैं, लेकिन आधिकारिक सूची 50 वर्षों तक गोपनीय रहेगी।
ट्रंप का नोबेल सपना: दावे बुलंद, लेकिन संभावनाएं कमजोर
ट्रंप ने अपने कार्यकाल में आठ प्रमुख संघर्षों को खत्म करने का बार-बार दावा किया है, जिसमें भारत-पाकिस्तान तनाव को समाप्त करने का जिक्र भी शामिल है, हालांकि भारत सरकार ने हमेशा इन दावों का खंडन किया है। हाल ही में इजरायल-हमास के बीच गाजा युद्ध पर उनके 20-सूत्री शांति योजना को पहला चरण लागू होने से हलचल मची है, लेकिन नोबेल विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला बहुत देर से आया है।
स्वीडन के प्रोफेसर पीटर वॉलेनस्टीन ने स्पष्ट कहा कि ट्रंप को इस साल पुरस्कार नहीं मिलेगा, हालांकि अगले साल गाजा संकट के समाधान पर विचार हो सकता है। नॉर्वे के विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप का आक्रामक रुख और दबाव बनाने की कोशिशें कमिटी को प्रभावित नहीं कर पाईं। रूस ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन तो किया है, लेकिन बुकमेकर्स और विशेषज्ञ ट्रंप को पसंदीदा सूची में पीछे रखते हैं।
वैश्विक संकटों की छाया में चुनौतीपूर्ण चयन
इस साल का चयन मुश्किल माना जा रहा है, क्योंकि दुनिया भर में संघर्ष चरम पर हैं। इजरायल-ईरान टकराव, गाजा युद्ध, भारत-पाकिस्तान के बीच ड्रोन-मिसाइल हमले, थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद जैसी घटनाओं ने शांति प्रयासों को चुनौती दी है। स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में रिकॉर्ड संख्या में राज्य-स्तरीय युद्ध हुए थे। 2024 में यह पुरस्कार जापान के निहोन हिदानक्यो को मिला था, जो परमाणु बम पीड़ितों का संगठन है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि कमिटी वैश्विक व्यवस्था को मजबूत करने वाले प्रयासों को प्राथमिकता देगी, खासकर उन नेताओं के खिलाफ जो इसे कमजोर कर रहे हैं।
प्रमुख दावेदार: ट्रंप के अलावा ये नाम आगे
हालांकि गोपनीयता के कारण आधिकारिक सूची उपलब्ध नहीं, लेकिन मीडिया और विशेषज्ञों के अनुसार निम्नलिखित नाम चर्चा में हैं:
सूडान की इमरजेंसी रिस्पॉन्स रूम्स (ERRs) को मजबूत दावेदार माना जा रहा है, जो युद्धग्रस्त क्षेत्रों में जान बचाने के लिए स्वयंसेवकों की टीम है। इस संघर्ष ने 13 मिलियन लोगों को विस्थापित किया है, और यह पुरस्कार मानवीय साहस को रेखांकित करेगा।
रूस के विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की विधवा यूलिया नवलनाया भी शीर्ष पसंदीदा हैं, जो अपने पति की लोकतंत्र और मानवाधिकारों की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। बुकमेकर्स के अनुसार, वे ट्रंप से आगे हैं।
ऑफिस फॉर डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूशंस एंड ह्यूमन राइट्स (ODIHR) चुनाव निगरानी और लोकतंत्र रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्थाएं जैसे यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, यूएनएचसीआर (शरणार्थी एजेंसी) और यूएनआरडब्ल्यूए (फलस्तीनी शरणार्थी एजेंसी) वैश्विक समर्थन के संदेश के रूप में पुरस्कार की हकदार मानी जा रही हैं।
वैश्विक न्याय और प्रेस स्वतंत्रता के लिए काम करने वाली संस्थाएं जैसे इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स और रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स भी संभावित हैं।
अन्य उल्लेखनीय नामों में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की, पाकिस्तानी सर्जन मलाला यूसुफजई जैसी युवा कार्यकर्ता (दूसरा पाकिस्तानी नोबेल), कतर के शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी (मध्यस्थता के लिए) और नाटो महासचिव मार्क रुट्टे शामिल हैं।
चौंकाने वाला फैसला संभव?
इतिहास गवाह है कि नोबेल समिति कभी अप्रत्याशित फैसले लेती है। इस बार भी कोई सरप्राइज हो सकता है, लेकिन ट्रंप का नाम लगभग बाहर हो चुका है। घोषणा के बाद पुरस्कार 10 दिसंबर को प्रदान किया जाएगा, जिसमें डिप्लोमा, स्वर्ण पदक और 1.2 मिलियन डॉलर का चेक शामिल है। दुनिया बेसब्री से इंतजार कर रही है कि शांति के इस सम्मान से किसे नवाजा जाएगा।