आरोपों पर जेटली ने किया पलटवार, कह दी ऐसी बात की चारों खाने चित्त हुई कांग्रेस

नई दिल्ली। सरकार ने बुधवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा को हटाने को लेकर विपक्ष के आरोपों को बकवास बताया। विपक्ष का कहना है कि आलोक वर्मा को इसलिए हटाया गया, क्योंकि वह राफेल सौदे के आरोपों में जांच के आदेश देने वाले थे।

जेटली

उधर, सरकार का कहना है कि जांच एजेंसी की संस्थानिक निष्ठा को बनाए रखने के लिए केंद्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश पर इस बाबत कदम उठाया गया।

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की तरफ से एक-दूसरे पर लगाए जा रहे रिश्वत के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा इस आदर्श का पालन किया जाएगा कि जिनके ऊपर आरोप हैं, वे जांच नहीं करेंगे या जांच की निगरानी नहीं करेंगे।

जेटली ने कहा, “मैं इसे बकवास समझता हूं। तीन विपक्षी दलों का कहना है कि हमें मालूम है कि एजेंसी आगे क्या (राफेल जांच) करने वाली है। इससे जांच की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न होता है।”

उन्होंने कहा, “मैं नहीं मानता की यह सच है। अगर तीनों दलों द्वारा कही गई बात सच है तो इससे जांच की निष्पक्षता पर गंभीर शंका पैदा होता है। इससे व्यक्ति की निष्ठा की अवमानना होती है।”

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उन्होंने कहा, “मेरा यह मानना है कि जब तक (आरोप) साबित न हो तब तक हर किसी को निर्दोष माना जाता है। हम पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहते हैं। हम यह सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध हैं कि भारत की जांच प्रक्रिया का उपहास न हो, क्योंकि कुछ अधिकारियों ने पिछले कुछ दिनों से ऐसा करने की कोशिश की है।”

जेटली ने कहा, “यह जरूरी है कि एक संस्थान के रूप में सीबीआई की निष्ठा कायम रहे। इसलिए अंतरिम उपाय के तौर पर कुछ अधिकारियों को कुछ समय के लिए बाहर रहना चाहिए। अगर वे निर्दोष होंगे तो वापस आ जाएंगे।”

वह कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप) और मार्क्‍सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (माकपा) द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे। तीनों विपक्षी दलों का आरोप है कि वर्मा को इसलिए बरखास्त किया गया, क्योंकि वह राफेल सौदे को लेकर लगे आरोपों की जांच करने वाले थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मामले की जांच की मांग करते हुए सीबीआई को एक ज्ञापन सौंपा था।

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जेटली ने कहा कि सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से विचित्र व दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हो गई थी।

उन्होंने कहा, “कौन जांच करेगा? निष्पक्षता और ईमानदारी की आवश्यकता है। यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है और यह काम सरकार नहीं करेगी।”

उन्होंने कहा कि सीबीआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत सीबीआई के जांच कार्य के अधीक्षण की शक्ति सीवीसी के पास है।

जेटली ने कहा, “यह काम कौन करेगा? कौन गवाह है और सीआरपीसी के तहत साक्ष्य क्या है? जांच निष्पक्ष होनी चाहिए। सीवीसी को इसकी जांच करनी चाहिए। सीवीसी के पास आपसी आरोपों के सारे तथ्य हैं।”

वित्तमंत्री ने कहा कि सीवीसी की मंगलवार शाम बैठक हुई और कहा गया कि दोनों अधिकारी इन आरोपों की जांच नहीं कर सकते और न ही उनके अधीक्षण वाली कोई एजेंसी कर सकती है।

उन्होंने कहा, “इसलिए सीबीआई की निष्ठा और जांच की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए एक अंतरिम उपाय के तौर पर उनको बाहर रहने को कहा गया है। दो में से किसी भी अधिकारी के अधीन काम नहीं करने वाली एक एसआईटी मामले की जांच करेगी।”

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