देवी पार्वती और भगनाव शिव के आशीर्वाद से यहां पूरी होती है हर मनोकामना

यह बात तो सभी को पता है कि भगनाव शिव और माता पार्वती का विवाह एक बार नहीं बल्कि अनेक बार हुआ है। माता का विवाह कभी सती के रूप में तो कभी उमा के रूप तो कभी पार्वती के रूप में। आप सभी माता के इन तीनों रूपों से तो परिचित ही होंगे। लेकिन क्या आपने यह बात जानने की कोशिश की कि उनका विवाह हुआ कहां था। आज हम आपको बताते हैं कि देवी पार्वती और प्रभु शिव को विवाह हुआ कहां था।

भगनाव शिव

रुद्रप्रयाग में एक स्थान है वो है ‘त्रियुगी नारायण’। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान बहुत ही पवित्र है। माना जाता है कि सतयुग में जब माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था तो वह इसी स्थान पर हुआ था। उस समय हिमवत ‘त्रियुगी नारायण’ की राजधानी थी। इस जगह पर आज भी हर साल देश भर से लोग संतान प्राप्ति के लिए इकट्ठा होते हैं और हर साल सितंबर महीने में बावन द्वादशी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है।

आज भी यहां विवाह की अग्नि है प्रज्वलित है

मान्यता है कि भगवान  शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने तपस्या की थी। यहां पर गौरी कुंड है वहीं पर देवी ने तपस्या की थी। तपस्या पूरी हो जाने के बाद भगवान ने इसी मंदिर में माता पार्वती से विवाह किया था। कहते हैं कि तब से लेकर आज तक उस कुंड में अग्नि जल रही है।

भगनाव शिव

कहा जाता है कि यहां पर हर मनोकामना पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान केदारनाथ की यात्रा से पहले यहां दर्शन करने से ही प्रभु प्रसन्न होते हैं।लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और अपने दिल का हाल बताते हैं। लोग यहां संतान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने भी आते हैं। अगर आपको कोई काम काफी समय से पूरा न हुआ हो तो आप इस मंदिर में आकर आपनी मनोकामना भगवान को प्रसन्न कर पूरी कर सकते हैं ।

 

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