नवरात्र में गरबे की धनक तो बहुत सुनी होगी लेकिन नहीं जानते होंगे असली नाम
नवरात्र के आगमन के साथ ही त्योहारों की भी शुरूआत हो जाती है. चारों तरफ खुशियों के रंग फैल जाते हैं. नवरात्र में गरबे की धनक भी खूब सुनाई देती है. बीते कुछ सालों में गरबा देश के हर कोने में फैल गया है. लेकिन क्या आप गरबे का असली नाम जानते हैं और क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर गरबा नवरात्र के समय ही क्यों होता है.
गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है.
गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है. आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है. इस रूप में काफी बदलाव हुआ है.
गरबा शब्द मूल रूप से संस्कृत के एक गर्भद्वीप से निकला हुआ है. बाद में अपभ्रंश के रूप में यह शब्द बदलता चला गया और वर्तमान में इसे गरबा के नाम से जाना जाता है.
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गरबा की शुरुआत में देवी के नजदीक एक सछिद्र घड़े को फूलों से सजाकर उसमें दीपक रखा जाता है. इसी दीप का दीपगर्भ कहा जाता है. नवरात्र की पहली रात्रि गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है.
इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं.
गरबा गुजरात और राजस्थान का प्रसिद्ध लोकनृत्य है, जिसे लोग पवित्र परंपरा से जोड़ते हैं. ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं इसलिए नवरात्र के दिनों में इस नृत्य के जरिए मां को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है. महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं. इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं.