50 हजार किसान और इकलौती सरकार, न पूरी हुईं ये मांगे तो सड़क पर होंगे ‘सरदार’

मुंबई: हमारे अन्नदाता और देश की खाद्य व्यवस्था का जिम्मा उठाने वाले किसान जब सड़क पर आए तो सवाल खड़ा हुआ कि आखिर चुनावी घोषणा पत्र में सर्वोपरि रहने वाले किसान को सरकार बनते ही क्यूँ दरकिनार कर दिया जाता है. हम सब उसी देश में रहते हैं जहाँ विजय माल्या और नीरव मोदी सरीखे उद्योगपति हजारों करोड़ का गबन करने के बाद भी कानूनी संरक्षण प्राप्त कर लेते हैं वहीं देश के मेहनतकश इन्सान की जिन्दगी अपने हक की लडाई लड़ने में ही निकल जाती है.किसान

सरकार चाहे जिसकी हो खुद को किसानों की हितैषी बताती है लेकिन एक अंतराल के बाद किसान सड़क पर उतरने को मजबूर होते रहे हैं. महाराष्ट्र में फिर से हजारों की संख्या में किसान सड़क पर उतरे हैं. हमारे अन्नदाताओं की मांग इतनी नाजायज भी नहीं है कि सरकार के पास इसको लेकर जवाब न देते बने.

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किसानों का मोर्चा आजाद मैदान पहुंच चुका है. इस महामोर्चा में 50 हजार किसान शामिल हैं. इन किसानों ने आज महाराष्ट्र विधानसभा का ऐलान किया है. इसके साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति में भी हलचल मच गई है. मोर्चे के मुंबई पहुंचते ही कई राजनीतिक पार्टियों ने इस पदयात्रा का समर्थन भी किया.

किसानो के प्रमुख सवाल हैं जिनके जवाब सरकार को तलाशने होंगे.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि कर्ज के बोझ तले किसानों में खुदकुशी की दर लगातार बढ़ रही है. 2005 से 2015 के बीच 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो देश में हर एक लाख की आबादी पर 1.4 से 1.8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं.

देश में 9 करोड़ किसान परिवार हैं जिसमें 6.3 करोड़ परिवार कर्ज में डूबा हुआ है. कर्ज में डूबने के कारण 1995 के बाद से अब तक करीब 4 लाख किसान खुदकुशी कर चुके हैं, इसमें खुदकुशी करने वाले करीब 76 हजार किसान अकेले महाराष्ट्र से हैं. खेती से जुड़ी सबसे ज्यादा समस्याएं इसी राज्य से हैं.

2017 में इन राज्यों में किसानों ने सबसे ज्यादा खुदकुशी की है. महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में भी किसान खुदकुशी करते रहे हैं.

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देश की राजनीति में किसानों की अहम भूमिका रहती है. यहां करीब 70 फीसदी लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े हैं. अमूमन हर चुनाव के पहले राजनीतिक दल किसानों की कर्ज माफी की बात करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद उस पर कुछ खास ध्यान नहीं देते जिससे किसान सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर होते हैं.

किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब और मझौले किसानों के कर्ज पूरी तरह से माफ किए जाएं.  आंदोलन कर रहे किसानों की मांग है कि बीते साल सरकार ने कर्ज माफी का जो वादा उनसे किया था उसे पूरी तरह से लागू किया जाए. बिना किसी शर्त के सभी किसानों का कर्ज माफ किया जाए साथ ही बिजली बिल भी माफ किया जाए.

आदिवासी वनभूमि के आवंटन से जुड़ी समस्याओं का निपटारा किया जाए जिससे आदिवासी किसानों को उनकी जमीनों का मालिकाना हक मिल सके.

लाल झंडा हाथों में थामे ये किसान ऑल इंडिया किसान सभा समेत तमाम संगठनों से जुड़े हैं. इस मार्च में किसानों के साथ खेतिहर मज़दूर और कई आदिवासी शामिल हैं. इनकी प्रमुख मांगों में कर्ज़माफी ले लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना शामिल है.

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