फूलपुर उपचुनाव:  वो जमीन जिस पर आज तक कोई वर्चस्व बना ही नहीं पाया

2019 आम चुनाव से पहले यूपी में आज सीएम योगी से लेकर बीजेपी तक टेंशन में है। योगी के गढ़ गोऱखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव को लेकर मतगणना जारी है। शुरुआती रुझानों में गोरखपुर में बीजेपी आगे चली लेकिन इस बड़ी सीट पर कुछ ही ही देर में तस्वीर बदल गई और सपा आगे हो गई है। ऐसा ही हाल फूलपुर सीट का है। यहां समाजवादी पार्टी के नागेंद्र सिंह पटेल बीजेपी के कौशलेंद्र सिंह पटेल से आगे चल रहे हैं।

फूलपुर

सपा की इस बढ़त ने बीजेपी की धड़कने जरूर बढ़ा दी हैं। 2014 में बीजेपी ने रिकॉर्ड मतों के साथ यहां पहली बार कमल खिलाया था। हालांकि फूलपुर के लिए ये उलटफेर कोई नया नहीं है। यह सीट 62 साल तक कांग्रेसियों और समाजवादियों की गढ़ रही। लेकिन यहां से समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जैसे दिग्गज भी चुनाव हार चुके हैं।

वैसे वर्ष 1971 तक फूलपुर पर कांग्रेस का कब्जा रहा। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फूलपुर से हैट्रिक लगाई। लेकिन धीरे-धीरे इस सीट पर समाजवादियों ने वर्चस्व कायम कर लिया। पहले जनता पार्टी फिर समाजवादी पार्टी ने इस सीट से संसद तक का सफर तय किया।

राजनीतिक इतिहास

इतिहास देखें तो 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में पंडित नेहरू ने इस पर विजय हासिल की। फिर 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में भी वही जीते। 1962 में डॉ। राम मनोहर लोहिया खुद जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़े, लेकिन वे हार गए।

1964 में नेहरू के निधन के बाद यहां उप चुनाव हुआ। जिसमें उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित को जनता ने जिताया। विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ 1967 के चुनाव में समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र खड़े हुए। लेकिन जनता ने उन्हें हरा दिया। वर्ष 1969 में विजय लक्ष्मी ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद सांसद पद से इस्तीफा दे दिया।

इस्तीफे के बाद हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी रहे केशवदेव मालवीय को उतारा लेकिन इस बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बैनर तले लड़े समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र ने उन्हें कांग्रेस से ये सीट छीन ली।

1971 में फूलपुर ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को संसद भेजा, जो आगे चलकर प्रधानमंत्री बने। आपातकाल के दौर में 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी की कमला बहुगुणा ने यह सीट कांग्रेस से छीनी। कांग्रेस ने यहां से रामपूजन पटेल को उतारा। नेहरू के बाद इस सीट पर सिर्फ रामपूजन पटेल ही हैट्रिक लगाई। उन्होंने 1984 (कांग्रेस), 1989 और 1991 (जनता दल) में जीत हासिल की।

1996 से 2004 तक हुए चार लोकसभा चुनावों में यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों का कब्जा रहा। इस दौरान 1996 में यहां से बीएसपी के संस्थापक कांशीराम चुनाव में खड़े हुए, लेकिन वह सपा के जंग बहादुर सिंह पटेल से 16021 वोट से हार गए। सपा ने 2004 में यहां से बाहुबली अतीक अहमद को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीत गए।बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि करवरिया ने इस सीट पर कांशीराम की हार का बदला 2009 के चुनाव में ले लिया।

जवाहरलाल नेहरू, पंडित विजय लक्ष्मी पंडित, विश्वनाथ प्रताप सिंह, कमला बहुगुणा की राजनैतिक जमीन पर 2014 में केशव प्रसाद मौर्य ने पहली बार भगवा लहराया।

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