कहीं आप भी जेनेरिक दवाई के नाम पर चल रहे गोरखधंधे का शिकार तो नहीं हैं?

रिपोर्ट – फहीम खान

कहीं आप भी जेनेरिक दवाई के नाम पर चल रहे गोरखधंधे का शिकार तो नहीं हैं?

रामपुर। अगर आप दवा लेने जा रहे हैं तो पहले प्रिंट रेट चेक कर जान ले कहीं आप भी जेनेरिक दवाई के नाम पर चल रहे गोरखधंधे का शिकार तो नहीं हैं?यूपी के रामपुर में जेनेरिक  दवाइयों के चलन को बड़ावा देने के पीछे सरकार का उद्देश्य लोगों को सस्ती दवा उपलब्धकराना है लेकिन दवा कंपनियों की मनमानी की वजह से जेनेरिक दवाइयों के जरिए भी मरीजों को लूटा जा रहा है।

जेनरिक दवाई के नाम चल रहे गोरखधंधे का शिकार

हालात ये है कि दवा विक्रेता जेनेरिक दवइयों पर 500 से 1000 प्रतिशत तक मुनाफा वसूल रहे हैं। रामपुर में दवा विक्रेताओं का यह खेल चल रहा है। इस लूट के खिलाफ NBAC क्राइम पिवेंशन और ह्यूमन राइट फाउंडेशन के अध्य्क्ष ने हल्ला बोल दिया है। उन्होंने राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण को पत्रकर लिखकर इसकी सूचना देने के साथ ही दवा के नाम पर चल रहे इस गोरख धंधे के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मांग की है।

दवा लेने से पहले चेक कर लें, कहीं आप भी जेनेरिक दवाई के नाम पर चल रहे गोरखधंधे का शिकार तो नहीं हैं?

क्राइम पिवेंशन सोसाइटी के अध्य्क्ष नरेेेश कुमार ने राष्ट्रीय मूल्य ओषधि प्राधिकरण को पत्र लिखकर मांग की है कि मार्केट में दवा विक्रेता जो जेनरिक दवाइयां बेच रहे हैं, वह पांच सौ से हज़ार प्रतिशत का मुनाफा कमा रहें हैं। इससे दवा खरीददारों का नुकसान तो हो ही रहा है, वहीं सरकार को लाखों करोड़ों का हर दिन चूना लग रहा है।

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वहीं NBAC क्राइम प्रिवेंशन सोसाइटी के अध्य्क्ष नरेश कुमार सिंह ने पत्र में लिखा है कि एक माह में दवा कंपनियों के सही दाम दवा स्ट्रिप पर सही मूल्य प्रिंट करवा कर मार्केट में दवा भिजवाएं। इसके साथ ही उसी प्रिंट मूल्य पर बिलिंग हो,ताकि सरकार को टैक्स के रूप में भी रकम मिल सके और जो दवा खरीददार है, उसे भी कम दाम पर दवा मिलें। उन्होंने बताया कि अगर इस पत्र पर एक माह में कोई गौर नहीं किया गया तो जनहित के इस कार्ये को लेकर अदलात का दरबाजा खटखटाएंगे।

अध्यक्ष नरेश कुमार सिंह ने बताया कि मार्केट में दवा कारोबारी एथिकल और जेनरिक दवाइयां बेच रहें हैं । एथिकलकंपनी की दवा पर कम मूल्य छपा होता है और वह मार्केट में एक फिक्स्ड मार्जन पर बिकती है, लेकिन जो जेनरिक दवाइयां यहां बिक रही हैं, उन पर उसके वास्तविक मूल्य से काफी ज्यादा मूल्य छपा होता है। कोई मरीज या डॉक्टर उसे खरीदता है तो उसे उसी प्रिंट पर दवाइयां बेची जाती है। जबकि इन दवाइयों की वास्तविक कीमत बहुत ही कम होती है।

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इन दवाइयों की बिलिंग भी नहीं होती है और न ही कोई बिल मांगता है। लिहाजा, दवा विक्रेता अपने मन माफिक मूल्यों पर मार्केट में दवाबेचकर 500 से 1000 प्रतिशत का मुनाफा कमा रहे हैं।
नरेश कुमार सिंह ने बताया कि जेनेरिक दवा में जितनी कमाई यह दवा विक्रेता करतें हैं उन पर किसी की नज़र नही है। दसगोलियों के स्ट्रिप पर अगर 100 रुपये प्रिंट मूल्य है तो वह दवा 7 से आठ रुपए की उन्हें मिलती है और वह बिना बिल के अपनीमर्जी से मार्केट में उसे बेचते हैं, जिससे बीमार यानी दवा खरीददार को भारी नुकसान तो होता ही है। साथ ही सरकार को लाखों – करोड़ों का टैक्स की भी चोरी की जाती है।

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