राजस्थान में हड़ताल पर ‘भगवान’, दो दर्जन से ज्यादा की मौत

डॉक्टर हड़तालजयपुर। हिन्दुस्तान एक ऐसा देश जहां डॉक्टर को भगवान् की श्रेणी में रखा जाता है। यहां हर-एक मरीज के परिजनों को अपनी आखिरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ ईश्वर स्वरुप डॉक्टर में ही दिखता है। लेकिन अगर यही भगवान रूठकर हड़ताल पर बैठ जाये तो उन मरीजों पर क्या होगा, जिनका अंतिम भरोसा उन्ही पर टिका हो। कुछ ऐसा ही इन दिनों राजस्थान में हो रहा है जहां पिछले 6 दिन से डॉक्टर हड़ताल पर हैं।

बता दें 9 हजार से ज्यादा सरकारी डॉक्टरों के बाद अब रेजीडेंट डॉक्टर भी हड़ताल पर चले गए हैं।

देश के सबसे बड़े राज्य की लगभग पौने सात करोड़ जनसंख्या बेहाल है। इसके कारण राजस्थान की चिकित्सा व्यवस्था भी बुरी तरह चरमरा चुकी है।

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खबरों करे मुताबि, ‘25 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और सैकड़ों जरूरी ऑपरेशन टाले जा चुके हैं। सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को जबरन छुट्टी दी जा रही है।

सीएचसी-पीएचसी सभी के बाहर मरीज इलाज के उम्मीद में पड़े हैं लेकिन डॉक्टरों की जिद हैं कि मानने को तैयार ही नहीं। अगर ऐसा ही रवैया रहा तो उन मरीजों का क्या होगा इसकी कल्पना आप खुद-ब-खुद कर सकते हैं।

लेकिन यह हड़ताल आखिर किस बात के लिए की जा रही है। आइये आपको पूरा माजरा बतातें हैं।

हड़ताल के पीछे डॉक्टरों की कई मांगें हैं। ज्यादातर मांगों पर लगभग सहमति है लेकिन कुछ एक ऐसी हैं जिनकी वजह से गतिरोध नहीं टूट पा रहा है। जोकि इस प्रकार हैं।

इन मांगों पर नहीं बनी सहमति

चिकित्सा विभाग में अतिरिक्त निदेशक के रूप में राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर की तैनाती को लेकर ये बखेड़ा खड़ा हुआ है। डॉक्टरों का कहना है कि अब तक इस पद पर सीनियर डॉक्टर ही तैनात होते रहे हैं। इनका कहना है कि गैर मेडिकल अधिकारी चिकित्सा विभाग का निदेशक कैसे हो सकता है।

सातवें वेतनमान की विसंगतियों को दूर करना, ग्रेड पे बढ़ाना, कैडर समान करना और डॉक्टरों से एक ही पारी में काम करवाने जैसी मांगें भी सरकार मानने से इनकार कर रही है।

सरकार को आशंका है कि 10 हजार से भी कम सरकारी डॉक्टरों की व्यवस्था के साथ सिर्फ एक पारी से हालात विकट हो सकते हैं।

सरकार के सख्त रवैये से हठी हुए ‘भगवान्’ 

डॉक्टरों की हड़ताल टूटती न देख राज्य सरकार ने राजस्थान आवश्यक सेवा अधिनियम (रेस्मा) लागू कर दिया है। इसके तहत अब तक लगभग 12 डॉक्टरों को हिरासत में भी लिया जा चुका है। सरकार ने गिरफ्तारी के लिए पुलिस को सेवारत चिकित्सक संघ के नेताओं की लिस्ट भी थमा दी है।

रेस्मा के डर से अधिकतर डॉक्टर नेता अंडरग्राउंड हो चुके हैं। बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर और श्रीगंगानगर जैसे सीमावर्ती जिलों के सिविल अस्पतालों की ओपीडी में बीएसएफ और सेना के डॉक्टरों को लगाना पड़ा है।

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बता दें सरकार और डॉक्टरों के बीच आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला थम नहीं रहा है।

वहीँ चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ ने कहा है कि डॉक्टरों को मनाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन वे राजनीतिक पैंतरेबाजी पर उतर आए हैं। इसलिए अब उनसे सख्ती से निबटा जाएगा। उन्होंने कहा कि बातचीत के दरवाजे खुले हैं लेकिन ब्लैकमेलिंग कतई सही नहीं जाएगी।

चिकित्सा मंत्री ने हड़तालियों को 10 नवंबर शाम तक काम पर लौट आने का अल्टीमेटम दिया था। इसके बाद सरकार ने दावा किया कि 60 फीसदी डॉक्टर काम पर लौट आए हैं।

वहीँ दूसरी ओर, हड़ताल पर गए सेवारत चिकित्सक संघ ने दावा किया कि अभी भी 99% डॉक्टर छुट्टी पर हैं और मांगें माने जाने तक कोई काम पर नहीं लौटेगा।

हाईकोर्ट ने भी अपनाया सख्त रवैय्या दिए कड़े निर्देश

राजस्थान के बिगड़ते हालात पर हाईकोर्ट भी सख्त हो चुका है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि हड़तालियों को व्यक्तिगत नोटिस जारी किए जाएं।

अदालत ने 5 दिन के भीतर-भीतर हड़ताल कर रहे डॉक्टरों की लिस्ट, उनके वेतन-भत्तों और सुविधाओं की पूरी जानकारी भी मांगी है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने डॉक्टरों पर काम का बोझ मानते हुए सरकार को ये भी कहा कि जो मांगें जायज़ हैं, उन्हे पूरा किया जाए और हड़ताल के मामले में 2011 के एक पुराने आदेश के तहत करवाई की जाए।

बता दें ये आदेश डॉक्टर अभिनव शर्मा की याचिका पर दिए गए।

हाईकोर्ट के रुख के बाद राजस्थान सरकार ने भी शनिवार को समाचार पत्रों एक सार्वजनिक नोटिस छपवाया। नोटिस के में हड़ताल को अवैधानिक करार दिया गया है और हड़ताली डॉक्टरों से फौरन ड्यूटी ज्वाइन करने को कहा गया है।

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उल्लेखनीय है कि कोर्ट के वर्कलोड पर कहा कि सेना और पुलिस पर भी जबरदस्त वर्कलोड है तो क्या उन्हे भी हड़ताल पर चले जाना चाहिए।

 मौसमी बीमारियों के बीच डॉक्टरों के हड़ताल से अफरा-तफरी का माहौल

राजस्थान में इस समय मलेरिया, बुखार, डेंगू और दूसरी मौसमी बीमारियां कहर बरपा रही हैं। शहरों में तो फिर भी निजी अस्पतालों का कुछ सहारा है लेकिन गांवों के हालात का अंदाजा लगाने भर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

यही नहीं, लोगों को पोस्टमॉर्टम तक के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। लेकिन अफसोस, न भगवान मानने को तैयार हैं और न सरकार ही अपने स्वामी (वोटर्स) की सुध लेने की बेचैनी दिखा पा रही है।

 अनसुलझे हैं कई सवाल

हड़ताल को लेकर बैठकों और चर्चाओं का दौर काफी पहले से ही चल रहा है। लेकिन अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है।

बता दें अब तक सरकार और डॉक्टरों के बीच 4 बैठकें हो चुकी हैं।

लेकिन हालात संभलने के बजाए बिगड़ते ही जा रहे हैं। कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है या सरकार की भाषा में कहें तो निकलने नहीं दिया जा रहा।

सरकार की तरफ से ये भी कहा जा रहा है कि हड़ताली डॉक्टरों की तरफ से लगातार मांगें बढ़ाई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि ग्रेड पे 10 हजार करने को छोड़कर बाकी सारी शुरुआती मांगें मंजूर कर ली गई थी।

इसके बावजूद डॉक्टरों ने दूसरी बैठक में 6 मांगें रख दी। चौथी बैठक में तो इन मांगों की संख्या बढ़कर 33 जा पहुंची है।

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