गरीबी के अंधरे में कहीं खो ना जायें लखनऊ का यह छोटा ध्यानचंद

रिपोर्टर:- अर्सलान समदी

लखनऊ। इनके पास न तो खेल का मैदान, ना ही खिलाडिय़ों के लिए जरूरी साजो-सामान, ना पैर में जूते और ना ही यूनीफार्म। खुराक के नाम पर रूखी सूखी रोटियां। लेकिन खेलने और जीतने का जो जज्बा है, उसके आगे ये तमाम बाधाएं कहीं नहीं ठहरतीं। उन्हें तो पूरी शिद्दत से बस हॉकी खेलना और हॉकी के मैदान पर छोटी सी उम्र में ही अपना लोहा मनवाना है।

लखनऊ का यह छोटा ध्यानचंद

जी हा हम बात कर रहे 13 साल के शाहरुख की, लखनऊ के शनज़फ़ में रहने वाले शाहरुख के पिता रोड पर स्कूटर बनाकर अपने परिवार का पालन करते है। बड़ा परिवार होने की वजह से उनके पिता भी शाहरुख और उमैर को अपने साथ दुकान पर बैठना चाहते थे लेकिन उनके हौसले और हाकी के लिए जुनून के आगे वो हार गए, उनको आज मलाल है कि, अगर उनके पास भी पैसे होते तो उनके बेटे भी अच्छी ट्रंनिंग करके और अच्छा प्रदर्शन करते।

शाहरुख के दोस्तों के मुताबिक उसका टैलेंट वर्ल्ड क्लास है और अगर उसको मदद मिले और उसकी आर्थिक स्थिति ठीक हुई तो वो देश का नाम रौशन करेगा।

शाहरुख के मुताबिक उसको ध्यानचंद बनना है, मैदान में अपना लोहा मनवाना है। अंडर 14 में सूबे की टीम सेंटर फ़ॉरवर्ड के तौर पर खेल रहे शाहरुख को भी इस बात का मलाल है की गरीबी और गुरबत उसके खेल के करियर को सामने मुश्किल बनकर खड़ी हो रही है।

यह भी पढ़े: जीत का सिलसिला जारी रखने उतरेगी कोहली ब्रिगेड, इंग्लैंड टेस्ट का चौथा मैच आज
शाहरुख की माँ की आँखे उस समय भर आती है जब उनके लड़के के खेल की तारीफ कोई उनसे करता है लेकिन नम आंखों से उनके दिल में एक संकोच भी है कि कबतक बिना पैसे के उसको हॉकी खेलने दे, घर के लिए अगर मेहनत करे तो बाप का अकेला सहारा बने।

के डी सिंह बाबू सोसाइटी के तहत खेल रहे शहरुख की बदनसीबी इतनी है, कि इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। संसाधनों के अभाव में यह प्रतिभाएं जो कल ध्यानचंद और सरदारा हो सकती है सिर्फ स्टेट और राष्ट्रीय स्तर के खेलों तक ही अपना जौहर दिखा पा रही है। स्टेट एवं नेशनल स्तर पर खेल चुके ये खिलाड़ी बेहद ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए होने वाला खर्च उठाना उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।

LIVE TV