यूपी पहुंची डेनमार्क की लाइलाज बीमारी, लक्षण से खा जाएंगे धोखा
कानपुर। यूपी के कानपुर में स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय (हैलट) के पैथोलॉजी विभाग की रिसर्च में “डेरियर” नाम की एक नई बीमारी का खुलासा हुआ है। “डेरियर” नाम की ये बिमारी डेनमार्क और स्कॉटलैंड से यहां पहुंची है। देशभर में अभी तक इस बीमारी के 15 मरीज मिले हैं, जबकि कानपुर में ये पहला मामला सामने आया है। यूपी में इस बिमारी की दस्तक से विशेषज्ञ भी हैरान हैं। दरअसल, “डेरियर” नाम की बिमारी का खुलासा तब हुआ जब एक 20 वर्षीय युवती हैलट अस्पताल में शरीर पर लाल चकत्तों का इलाज कराने पहुंची थी।
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बता दें कि, गोविंदनगर निवासी युवती के शरीर पर लाल-काले चकत्तों के साथ दाने निकले हुए थे। उसके परिजनों ने मेडिकल कॉलेज की स्किन रोग ओपीडी में दिखाया तो स्किन कैंसर की आशंका जताते हुए डॉक्टरों ने उसे सर्जरी विभाग रेफर कर दिया। विभाग ने बायोप्सी जांच के लिए उसे सुझाव दिया। हैलट अस्पताल के पैथोलॉजी विभाग ने बायोप्सी की लेकिन कैंसर की पुष्टि नहीं हुई तो डायग्नोसिस शुरू की गई। पैथोलॉजी की रिपोर्ट को सौ से अधिक आनुवंशिक चर्म रोगों के लक्षणों से मिलान किया गया तो डेरियर बीमारी के लक्षण पाए गए। पैथोलॉजी में हो रहे विश्व स्तर पर रिसर्च को छापने वाली पत्रिका ने जीएसवीएम की इस रिसर्च को स्वीकार कर लिया है।
हैलट अस्पताल के पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो। महेन्द्र सिंह ने बताया कि युवती के खून की जांच में कैंसर कोशिकाओं की जगह कुछ नई चीजें दिखाई दीं। 15 दिनों तक स्लाइड पर अध्ययन किया गया। कोशिकाओं में कुछ ऐसी चीजें दिखाई दी जो सामान्य स्किन की बीमारी में नहीं मिलती हैं। कुछ दूसरी जांचों के सहारे डेरियर बीमारी की डायग्नोसिस की गई है। पता चला है कि युवती के पिता को इस तरह की बीमारी थी।
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कोई इलाज नहीं है
इस बीमारी पर अभी शोध हो रहे हैं। अभी तक इलाज नहीं खोजा जा सका है। मरीज को अवसाद और न्यूरोसाइकियाट्री सम्बंधी बीमारियों का इलाज दिया जाता है ताकि वह डिप्रेशन में न जाए।
डेरियर के लक्षण
विशेषज्ञों के मुताबिक डेरिया सोरिएसिस, इक्थिआसिस और केराटोसिस से ज्यादा खतरनाक बीमारी है। इसमें सीने, गर्दन, पीठ, पेट और कान के निकट काले और लाल दाने निकलते हैं। कभी-कभी दाने फफोलों में बदल जाते हैं और धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
आनुवांशिक बीमारी
डेरियर चर्म रोग की आनुवांशिक बीमारी है। माता-पिता में से किसी एक में यह बीमारी होगी तो पीढ़ी में ट्रांसफर होगी। 15 से 16 वर्ष आयु तक बीमारी नहीं दिखती, लेकिन 16 और 30 वर्ष तक बीमारी अचानक उभरती है। यह जीवनभर रहती है।