1959 में रक्षक बने जवान को दलाई लामा ने लगाया गले

धर्मशाला। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा शनिवार को उस वक्त भावुक हो गए, जब उन्होंने तिब्बत से भागकर भारत आने के क्रम में उनकी रक्षा करने वाले असम राइफल्स के पांच जवानों में से एक नरेन चंद्र दास को गले लगया। 80 वर्ष के हो चुके दास ने 1959 में दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश में रक्षा की थी। दलाई लामा मार्च 1959 में तिब्बत से भारत आने के बाद यहां निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

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दलाई लामा

दास ने दलाई लामा के भारत आने की 60वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से कहा, “मैं एक बार फिर अभिभूत महसूस कर रहा हूं, क्योंकि धर्मगुरु ने एक बार फिर मुझे स्पर्श किया और अपने सिर से मेरा सिर टकराया।”

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दास ने कहा कि वह उन्हें आमंत्रित करने के लिए धर्मगुरु के आभारी हैं। यह समारोह एक वर्ष तक चलने वाले ‘थैंक यू इंडिया’ अभियान के अंतर्गत आयोजित किया गया।

इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, संसद सदस्य शांता कुमार और सत्यव्रत चतुर्वेदी और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन(सीटीए) के अध्यक्ष लोबसांग सांगय समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।

असम सरकार द्वारा वर्ष 2017 में आयोजित एक समारोह में दास ने 1959 के बाद पहली बार दलाईलामा से मुलाकात की थी।

1957 में सेना में शामिल होने वाले दास ने कहा, “उन्हें अन्य के साथ दलाई लामा की रक्षा करने के लिए कहा गया था। हमें केवल उनकी रक्षा करने के लिए कहा गया था न कि बात करने के लिए।”

वह उस समय चीन सीमा के पास लुंगला में पदस्थापित थे। इससे पहले उन्होंने पूवरेत्तर सीमांत एजेंसी(अब अरुणाचल प्रदेश) के तवांग मे अपना प्रशिक्षण पूरा किया था।

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