आंखे बड़ी करके पढ़ें आई ड्रॉप की यह सच्चाई

आई ड्रॉपनई दिल्ली। आंख को लेकर कोई भी लापरवाही नहीं बरतना चाहता। थोड़ी सी भी दिक्कत होने पर भी हम तुरंत चिकित्सक के पास पहुंचते हैं। डॉक्टर भी हमें आई ड्रॉप लिख ही देता है। लेकिन खुद आई ड्रॉप डालना आसान काम नहीं है।

अक्सर आई ड्रॉप डालते आंखों में कम जाता है और चेहरे पर ज्यादा फैल जाता है। शायद ही लोग ये जानते होंगे कि यह होता नहीं है बल्कि कराया जाता है।

आई ड्रॉप की बॉटल को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ताकि उससे उससे ज्यादा लिक्विड निकले और बर्बाद हो। हम खुद आंख में डालने के दौरान कितनी भी सावधानी बरतें लेकिन दवा का ज्यादा हिस्सा बाहर जाना तय है।

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प्रोपब्लिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक आई ड्रॉप हमारी आंखों से ओवरफ्लो करने लगता है क्योंकि ड्रॉप का साइज बड़ा होने की वजह से इंसान की आंखें एक बार में जितनी दवा को संभाल सकती हैं उससे ज्यादा दवा आंखों में पहुंच जाती है। नतीजा दवा बर्बाद होती है और ओवरफ्लो होकर चेहरे पर फैल जाती है।

दरअसल, दवा कंपनियां जानबूझकर ड्रॉप को बड़ा बनाती हैं ताकि दवा बर्बाद हो और मरीज अपनी जरूरत के हिसाब से ज्यादा दवा खरीदे। अगर ड्रॉप की गोली से तुलना की जाए तो यही ठीक वैसा ही है जैसा हर बार आप एक गोली खाते वक्त एक एक्सट्रा गोली को फेंक दें।

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फाइजर मेमो 2011 के मुताबिक इंसान की आंखें 7ul दवा को सोख सकती हैं

(ul यानी माइक्रोलीटर जो 1 लीटर का 10 लाख वां हिस्सा होता है)

2006 की एक स्टडी में यह बात सामने आयी थी कि आंखों के लिए मेडिसिन ड्रॉप का सही साइज 15ul होना चाहिए

हकीकत में आईड्रॉप का साइज 25 ul से 56ul तक होता है।

एक मशहूर आई ड्रॉप उत्पादक कंपनी ने 2014 में इस बात को माना था कि 5ul, 10ul, 15ul, 20ul और 30ul के आईड्रॉप्स ग्लोकउमा के इलाज में बराबर रूप से कारगर साबित होते हैं।

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