सामने आया अनोखा जीव, पानी की सफाई के साथ बढ़ाएगा ऑक्सीजन की मात्रा

साफ़ जलदेहरादून यह बात ही हमें पानी के महत्व को समझने के लिए पर्याप्त है कि व्यक्ति बिना खाने के लगभग 20 दिनों तक ज़िंदा रह सकता है लेकिन बिना पानी के उसका 2 दिन जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में सभी को साफ़ जल मिल सके इस दिशा में उत्तराखंड वन विभाग के एक अधिकारी ने बेहद महत्वपूर्ण खोज की है। वन विभाग अधिकारी ने एक ऐसा जीव ढूंढ लिया है जो पानी को साफ़ करने का काम करता है और उसमें ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है। क़रीब एक साल के शोध के बाद मिली इस सफलाता से उन्हें काफी प्रसन्नता हुई है।

अनोखे जीव का खोज करने वाले 99 बैच के आईएफ़एस अधिकारी सीसीएफ़ मनोज चंद्रन ने बताया कि “करीब एक साल पहले उन्होंने नदी के पानी को लेकर उसमें मौजूद जलीय जंतुओं का अध्ययन शुरू किया था। इसी दौरान उन्हें यह जीव रोटिफ़र वल्गैरिस दिखा। उन्होंने देखा की यह जीव पानी में मौजूद गंदगी को खाकर साफ़ कर देता है।

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रोटिफ़र की वल्गैरिस प्रजाति के इस जीव के गंदगी को साफ़ करने का तरीका भी बहुत निराला है। वह एक खोल में रहता है और खाने की ज़रूरत पड़ने पर अपने दोनों हाथ बाहर निकालकर उन्हें तेज़ी से घुमाकर एक भंवर बनाता है जिसमें गंदगी खिंची चली आती है।

सिर्फ़ 0।1 मिलीमीटर आकार का यह जलीय जीव इस  प्रक्रिया के दौरान न सिर्फ़ वह गंदगी को खींचकर खाता है बल्कि वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को भी पानी में घोलता जाता है जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है”।

ख़ास बात यह है कि एग्रीकल्चर से बीएससी और फिर वन सेवा में फॉरेस्ट्री में एमएससी करने वाले मनोज चंद्रन ने यह अध्ययन समाज कल्याण विभाग में तैनाती के दौरान अपने घर पर ही शुरू किया था। यानि कि रोटिफ़र वल्गैरिस से उनकी पहली मुलाकात अपने घर में निजी माइक्रोस्कोप में ही हुई थी।

99 बैच के आईएफ़एस अधिकारी सीसीएफ़ मनोज चंद्रन दो महीने पहले ही अपने मूल विभाग, वन, में लौटे हैं। दो साल तक वह समाज कल्याण विभाग में अपर सचिव के रूप में काम कर रहे थे लेकिन वहीं काम करते हुए उन्होंने राजाजी नेशनल पार्क में सुसवा नदी के जीवों पर काम करना शुरू कर दिया था।

विज्ञान के छात्र रहे चंद्रन ने इसके बाद इसे बढ़ाने की कोशिशें की जो सफल रहीं। उन्हें लगता है कि यह जलीय जीव सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में काफ़ी कारगर हो सकता है क्योंकि जो गंदगी मशीन से साफ़ नहीं हो सकती उसे खाकर ख़त्म कर देता है।

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चंद्रन यह साफ़ कर देते हैं कि उन्होंने पहली बार इस जीव को नहीं खोजा है। वह कहते हैं जब शुरुआती अध्ययन के दौरान उन्हें यह जीव दिखा तो उन्होंने इंटरनेट पर रिसर्च की और वहीं से उन्हें पता चला कि यह रोटिफ़र प्रजाति का जीव है।

शोध के दौरान यह भी पता चला कि अब तक हुए शोधों से यह पता चल चुका है कि पानी ज़्यादा गंदा होने पर उसमें रोटिफ़र ज़्यादा होते हैं लेकिन कहीं भी इन्हें जल शोधन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।

चंद्रन कहते हैं कि शुरुआती खोज के बाद अब इस रोटिफ़र वल्गैरिस का पानी को साफ़ करने के लिए कैसे इस्तेमाल करना है और यह कितना कारगर हो सकता है इसके लिए अब वैज्ञानिकों को काम करना होगा। इस संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वन विभाग की बातचीत हो भी रही है।

उन्हें लगता है कि वन विभाग में आने के बाद अब उनके लिए इस तरह के काम करना कुछ आसान हो जाएगा और वैज्ञानिक संस्थाएं अगर ऐसी खोजों को उनके मुकाम तक ले जाती हैं तो न सिर्फ़ उत्तराखंड की रिस्पना, बिदांल बल्कि गंगा-यमुना जैसी नदियों को भी निर्मल करने का सपना एक दिन पूरा हो सकता है।

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