बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण विवाद: सुप्रीम कोर्ट में आज होगी अहम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट आज, 10 जुलाई को बिहार में निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी, जिसमें विपक्षी दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने एसआईआर को “मनमाना” और “असंवैधानिक” करार देते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।

मामले का विवरण
24 जून 2025 को ईसीआई ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी। इस प्रक्रिया का उद्देश्य अयोग्य मतदाताओं को हटाना और केवल पात्र नागरिकों को सूची में शामिल करना है। हालांकि, विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह प्रक्रिया नागरिकों पर अनुचित दस्तावेजी बोझ डालती है और लाखों मतदाताओं, खासकर गरीब, दलित, मुस्लिम, और प्रवासी समुदायों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (स्वतंत्रता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता), 325 (चुनावी सूची से बहिष्कार पर रोक), और 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करती है।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

  • सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अजमल और रूपेश कुमार ने अपनी याचिका में कहा कि एसआईआर जन्म, निवास, और नागरिकता के लिए अनुचित दस्तावेजीकरण मांगता है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों को कमजोर करता है।
  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया बिहार में कम जन्म पंजीकरण दर और दस्तावेजों की कमी के कारण लाखों लोगों को मतदाता सूची से हटा सकती है। आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों को स्वीकार न करना विशेष रूप से ग्रामीण और गरीब मतदाताओं के लिए हानिकारक है।
  • राजद सांसद मनोज झा ने इसे “संस्थागत मताधिकार हनन का उपकरण” बताया, जो मुस्लिम, दलित, और गरीब प्रवासी समुदायों को लक्षित करता है।
  • तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने दावा किया कि यह प्रक्रिया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जैसी है और अन्य राज्यों में भी लागू हो सकती है।
  • विपक्षी दलों (कांग्रेस, एनसीपी-शरद पवार, शिवसेना-यूबीटी, समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई, और सीपीआई-एमएल) ने संयुक्त याचिका में कहा कि यह प्रक्रिया बिना राजनीतिक दलों से परामर्श के शुरू की गई और इसका समय (25 जुलाई तक दस्तावेज जमा करने की समयसीमा) अव्यावहारिक है।

निर्वाचन आयोग का पक्ष
ईसीआई ने कहा कि यह पहल 2003 के बाद बिहार में पहला व्यापक पुनरीक्षण है, जिसका उद्देश्य तेजी से शहरीकरण, प्रवास, नए मतदाताओं, मृत्यु की गैर-रिपोर्टिंग, और अवैध विदेशी नागरिकों (जैसे रोहिंग्या और बांग्लादेशी) के नाम हटाना है। आयोग का दावा है कि 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 97.42% को प्री-फिल्ड गणना फॉर्म वितरित किए गए हैं, और बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर सत्यापन कर रहे हैं। ईसीआई ने यह भी स्पष्ट किया कि 25 जुलाई के बाद भी दावे और आपत्ति की अवधि में दस्तावेज जमा किए जा सकते हैं।

विपक्ष का विरोध

  • बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इसे “षड्यंत्र” करार दिया, क्योंकि 2003 में हुई समान प्रक्रिया में दो साल लगे थे, जबकि अब केवल 25 दिन में 8 करोड़ मतदाताओं की सूची तैयार करने का लक्ष्य है।
  • कांग्रेस ने इसे “चुनावी धांधली का प्रयास” बताया, क्योंकि आधार और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज स्वीकार नहीं किए जा रहे।
  • राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने 9 जुलाई को पटना में “बिहार बंद” का आयोजन कर विरोध दर्ज किया।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 7 जुलाई को याचिकाओं की तत्काल सुनवाई के लिए सहमति दी थी, लेकिन अंतरिम स्थगन से इनकार कर दिया। आज की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन, और शादान फरासत करेंगे। कोर्ट यह तय करेगा कि क्या ईसीआई का आदेश संवैधानिक है या इसे रद्द करने की आवश्यकता है।

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