
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने इस प्रक्रिया को अनुचित ठहराया, जबकि चुनाव आयोग ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की। आधार कार्ड को मतदाता सत्यापन के दस्तावेजों से हटाने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा।

चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि पुनरीक्षण में नागरिकता का मुद्दा क्यों शामिल किया गया, जो गृह मंत्रालय का क्षेत्र है। कोर्ट ने कहा कि यदि नागरिकता की जांच जरूरी थी, तो इसे पहले करना चाहिए था। अब समय अनुपयुक्त है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुनरीक्षण की प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है, लेकिन इसके लिए चुना गया समय सही नहीं है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस बागची ने कहा कि गैर-नागरिकों को मतदाता सूची से हटाने की प्रक्रिया गलत नहीं है, लेकिन इसे चुनाव से पहले करना चाहिए था। जस्टिस धूलिया ने कहा कि एक बार मतदाता सूची अंतिम रूप ले ले और अधिसूचित हो जाए, तो कोई भी अदालत उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी।
पुनरीक्षण का बिहार चुनाव से संबंध क्यों?
जस्टिस बागची ने चुनाव आयोग से पूछा कि यह प्रक्रिया नवंबर के बिहार चुनाव से क्यों जोड़ी जा रही है, जबकि यह देशव्यापी और स्वतंत्र हो सकती है। चुनाव आयोग के वकील ने आश्वासन दिया कि बिना सुनवाई के किसी को मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा और प्रक्रिया का पालन होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगे तीन सवालों के जवाब
कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा। कोर्ट ने कहा कि यह मामला लोकतंत्र और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। याचिकाकर्ता न केवल आयोग के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि प्रक्रिया और इसके समय पर भी सवाल उठा रहे हैं।
चुनाव आयोग का तर्क: ‘मतदाताओं के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं’
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि यह एक संवैधानिक संस्था है, जिसका आधार मतदाता हैं। आयोग का इरादा किसी को मतदाता सूची से हटाने का नहीं है, जब तक कि कानून इसे अनिवार्य न करे। आयोग धर्म, जाति या अन्य आधार पर भेदभाव नहीं करता।
‘नागरिकता जांच के लिए पहले कार्रवाई होनी चाहिए थी’
जस्टिस धूलिया ने कहा कि नागरिकता जांच के लिए साक्ष्यों का कड़ाई से मूल्यांकन और अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया जरूरी है। बिहार में विशेष पुनरीक्षण के तहत नागरिकता जांच के लिए पहले कदम उठाए जाने चाहिए थे। अब समय निकल चुका है। आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदाता पात्रता के लिए नागरिकता की जांच जरूरी है।
‘हाईवे पर रहें, गलियों में न जाएं’
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची जून में तैयार हो चुकी थी। जस्टिस धूलिया ने टिप्पणी की कि आयोग जाने-माने लोगों जैसे न्यायाधीशों, पत्रकारों और कलाकारों को शामिल कर रहा है। उन्होंने कहा कि मामले को अनावश्यक रूप से जटिल करने की बजाय मुख्य मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। जस्टिस बागची ने आधार कार्ड को हटाने को याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क बताया।
पुनरीक्षण का समय कब?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि आयोग को यह प्रक्रिया कब करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता आयोग की शक्तियों को नहीं, बल्कि इसके संचालन के तरीके और समय को चुनौती दे रहे हैं।
‘आयोग का काम संवैधानिक रूप से अनिवार्य’
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि मतदाता सूची पुनरीक्षण का आधार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 है। इसमें गहन और संक्षिप्त पुनरीक्षण का प्रावधान है। गहन पुनरीक्षण में पूरी सूची नई बनती है, जिसमें बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया जाता है, जबकि संक्षिप्त पुनरीक्षण में छोटे बदलाव होते हैं। इस बार विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश दिया गया।
जस्टिस धूलिया ने कहा कि आयोग का यह काम संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। आयोग ने 2003 में भी ऐसा किया था और इसके पीछे तर्क मौजूद है। कोर्ट ने पूछा कि जब आयोग के पास आंकड़े हैं, तो दोबारा गहन प्रक्रिया की जरूरत क्यों?
विपक्षी दलों की याचिकाएं
चुनाव आयोग के विशेष पुनरीक्षण के फैसले के खिलाफ कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) के नेताओं ने संयुक्त याचिका दायर की है। इसके अलावा, राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, एनसीपी की सुप्रिया सुले, सीपीआई के डी राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं।